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मृ॒ळा नो॑ रुद्रो॒त नो॒ मय॑स्कृधि क्ष॒यद्वी॑राय॒ नम॑सा विधेम ते। यच्छं च॒ योश्च॒ मनु॑राये॒जे पि॒ता तद॑श्याम॒ तव॑ रुद्र॒ प्रणी॑तिषु ॥

English Transliteration

mṛḻā no rudrota no mayas kṛdhi kṣayadvīrāya namasā vidhema te | yac chaṁ ca yoś ca manur āyeje pitā tad aśyāma tava rudra praṇītiṣu ||

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Pad Path

मृ॒ळ। नः॒। रु॒द्र॒। उ॒त। नः॒। मयः॑। कृ॒धि॒। क्ष॒यत्ऽवी॑राय। नम॑सा। वि॒धे॒म॒। ते॒। यत्। शम्। च॒। योः। च॒। मनुः॑। आ॒ऽये॒जे। पि॒ता। तत्। अ॒श्या॒म॒। तव॑। रु॒द्र॒। प्रऽनी॑तिषु ॥ १.११४.२

Rigveda » Mandal:1» Sukta:114» Mantra:2 | Ashtak:1» Adhyay:8» Varga:5» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:16» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब राजविषय कहा जाता है ।

Word-Meaning: - हे (रुद्र) दुष्ट शत्रुओं को रुलानेहारे राजन् ! जो हम (क्षयद्वीराय) विनाश किये शत्रु सेनास्थ वीर जिसने उस (ते) आपके लिये (नमसा) अन्न वा सत्कार से (विधेम) विधान करें अर्थात् सेवा करें, उन (नः) हम लोगों को तुम (मृड) सुखी करो और (नः) हम लोगों के लिये (मयः) सुख (कृधि) कीजिये। हे (रुद्र) न्यायाधीश ! (मनुः) मननशील (पिता) पिता के समान आप (यत्) जो रोगों का (शम्) निवारण (च) ज्ञान (योः) दुःखों का अलग करना (च) और गुणों की प्राप्ति का (आयेजे) सब प्रकार सङ्ग कराते हो (तत्) उसको (अश्याम) प्राप्त होवें (उत) वे ही हम लोग (तव) तुम्हारी (प्रणीतिषु) उत्तम नीतियों में प्रवृत्त होकर निरन्तर सुखी होवें ॥ २ ॥
Connotation: - राजपुरुषों को योग्य है कि स्वयं सुखी होकर सब प्रजाओं को सुखी करें। इस काम में आलस्य कभी न करें और प्रजाजन राजनीति के नियम में वर्त्त के राजपुरुषों को सदा प्रसन्न रक्खें ॥ २ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ राजविषयः प्रोच्यते ।

Anvay:

हे रुद्र ये वयं क्षयद्वीराय ते तुभ्यन्नमसा विधेम तान्नो त्वं मृड नोऽस्मभ्यमयस्कृधि च। हे रुद्र मनुः पितेव भवान् यच्छं च योश्चायेजे तदश्याम त उत वयं तव प्रणीतिषु वर्त्तमाना सततं सुखिनः स्याम ॥ २ ॥

Word-Meaning: - (मृड) सुखय। अत्र दीर्घः। (नः) अस्मान् (रुद्र) दुष्टान् शत्रून् रोदयितः (उत) अपि (नः) अस्मभ्यम् (मयः) सुखम् (कृधि) कुरु (क्षयद्वीराय) क्षयन्तो विनाशिताः शत्रुसेनास्था वीरा येन तस्मै (नमसा) अन्नेन सत्कारेण वा (विधेम) सेवेमहि (ते) तुभ्यम् (यत्) (शम्) रोगनिवारणम् (च) ज्ञानम् (योः) दुःखवियोजनम्। अत्र युधातोर्डोसिः प्रत्ययः। (च) गुणप्रापणसमुच्चये (मनुः) मननशीलः (आयेजे) समन्ताद्याजयति (पिता) पालकः (तत्) (अश्याम) प्राप्नुयाम। अत्र व्यत्ययेन श्यन् परस्मैपदं च। (तव) (रुद्र) न्यायाधीश (प्रणीतिषु) प्रकृष्टासु नीतिषु ॥ २ ॥
Connotation: - राजपुरुषाः स्वयं सुखिनो भूत्वा सर्वाः प्रजाः सुखयेयुः. नैवात्र कदाचिदालस्यं कुर्युः, प्रजाजनाश्च राजनीतिनियमेषु वर्त्तित्वा राजपुरुषान् सदा प्रीणयेयुः ॥ २ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - राजपुरुषांनी स्वतः सुखी व्हावे व सर्व प्रजेला सुखी करावे. या कामी कधी आळस करू नये. प्रजेने राजनीतीच्या नियमांचे पालन करावे व राजपुरुषांना सदैव प्रसन्न ठेवावे. ॥ २ ॥