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इ॒मा रु॒द्राय॑ त॒वसे॑ कप॒र्दिने॑ क्ष॒यद्वी॑राय॒ प्र भ॑रामहे म॒तीः। यथा॒ शमस॑द्द्वि॒पदे॒ चतु॑ष्पदे॒ विश्वं॑ पु॒ष्टं ग्रामे॑ अ॒स्मिन्न॑नातु॒रम् ॥

English Transliteration

imā rudrāya tavase kapardine kṣayadvīrāya pra bharāmahe matīḥ | yathā śam asad dvipade catuṣpade viśvam puṣṭaṁ grāme asminn anāturam ||

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Pad Path

इ॒माः। रु॒द्राय॑। त॒वसे॑। क॒प॒र्दिने॑। क्ष॒यत्ऽवी॑राय। प्र। भ॒रा॒म॒हे॒। म॒तीः। यथा॑। शम्। अस॑त्। द्वि॒ऽपदे॑। चतुः॑ऽपदे॑। विश्व॑म्। पु॒ष्टम्। ग्रामे॑। अ॒स्मिन्। अ॒ना॒तु॒रम् ॥ १.११४.१

Rigveda » Mandal:1» Sukta:114» Mantra:1 | Ashtak:1» Adhyay:8» Varga:5» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:16» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब ग्यारह ऋचावाले एकसौ चौदहवें सूक्त का प्रारम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में विद्वद्विषय को कहते हैं ।

Word-Meaning: - हम अध्यापक वा उपदेशक लोग (यथा) जैसे (द्विपदे) मनुष्यादि (चतुष्पदे) और गौ आदि के लिये (शम्) सुख (असत्) होवे (अस्मिन्) इस (ग्रामे) बहुत घरोंवाले नगर आदि ग्राम में (विश्वम्) समस्त चराचर जीवादि (अनातुरम्) पीड़ारहित (पुष्टम्) पुष्टि को प्राप्त (असत्) हो तथा (तवसे) बलयुक्त (क्षयद्वीराय) जिसके दोषों का नाश करनेहारे वीर पुरुष विद्यमान (रुद्राय) उस चवालीस वर्ष पर्यन्त ब्रह्मचर्य करनेहारे (कपर्दिने) ब्रह्मचारी पुरुष के लिये (इमाः) प्रत्यक्ष आप्तों के उपदेश और वेदादि शास्त्रों के बोध से संयुक्त (मतीः) उत्तम प्रज्ञाओं को (प्र, भरामहे) धारण करते हैं ॥ १ ॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। जब आप्त, सत्यवादी, धर्मात्मा, वेदों के ज्ञाता, पढ़ाने और उपदेश करनेहारे विद्वान्, तथा पढ़ाने और उपदेश करनेहारी स्त्री, उत्तम शिक्षा से ब्रह्मचारी और श्रोता पुरुषों तथा ब्रह्मचारिणी और सुननेहारी स्त्रियों को विद्यायुक्त करते हैं, तभी ये लोग शरीर और आत्मा के बल को प्राप्त होकर सब संसार को सुखी कर देते हैं ॥ १ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ विद्वद्विषयमाह।

Anvay:

वयमध्यापकाः उपदेशका वा यथा द्विपदे चतुष्पदे शमसदस्मिन् ग्रामे विश्वमनातुरं पुष्टमसत्तथा तवसे क्षयद्वीराय रुद्राय कपर्दिन इमा मतीः प्रभरामहे ॥ १ ॥

Word-Meaning: - (इमा) प्रत्यक्षतयाऽऽप्तोपदिष्टा वेदादिशास्त्रोत्थबोधसंयुक्ताः (रुद्राय) कृतचतुश्चत्वारिंशद्वर्षब्रह्मचर्य्याय (तवसे) बलयुक्ताय (कपर्दिने) ब्रह्मचारिणे (क्षयद्वीराय) क्षयन्तो दोषनाशका वीरा यस्य तस्मै (प्र) भरामहे (धरामहे) (मतीः) प्रज्ञाः (यथा) (शम्) सुखम् (असत्) भवेत् (द्विपदे) मनुष्याद्याय (चतुष्पदे) गवाद्याय (विश्वम्) सर्वं जीवादिकम् (पुष्टम्) पुष्टिं प्राप्तम् (ग्रामे) शालासमुदाये नगरादौ (अस्मिन्) संसारे (अनातुरम्) दुःखवर्जितम् ॥ १ ॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। यदाऽऽप्ता वेदविदः पाठका उपदेष्टारश्च पाठिका उपदेष्ट्र्यश्च सुशिक्षया ब्रह्मचारिणः श्रोतॄँश्च ब्रह्मचारिणीः श्रोतॄँश्च विद्यायुक्ताः कुर्वन्ति तदैवेमे शरीरात्मबलं प्राप्य सर्वं जगत् सुखयन्ति ॥ १ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात ब्रह्मचारी, विद्वान, सभाध्यक्ष व सभासद इत्यादी गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्तात सांगितलेल्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणण्यायोग्य आहे. ॥

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जेव्हा आप्त, सत्यवादी, धर्मात्मा, वेदांचे ज्ञाते, अध्यापक, उपदेशक, विद्वान, अध्यापिका व उपदेशिका, उत्तम शिक्षणाने ब्रह्मचारी व श्रोत्यांना, ब्रह्मचारिणी व श्रोत्या स्त्रियांना विद्यायुक्त करतात तेव्हाच हे लोक शरीर व आत्मा यांचे बल प्राप्त करून सर्व जगाला सुखी करतात. ॥ १ ॥