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उषो॒ यद॒ग्निं स॒मिधे॑ च॒कर्थ॒ वि यदाव॒श्चक्ष॑सा॒ सूर्य॑स्य। यन्मानु॑षान्य॒क्ष्यमा॑णाँ॒ अजी॑ग॒स्तद्दे॒वेषु॑ चकृषे भ॒द्रमप्न॑: ॥

English Transliteration

uṣo yad agniṁ samidhe cakartha vi yad āvaś cakṣasā sūryasya | yan mānuṣān yakṣyamāṇām̐ ajīgas tad deveṣu cakṛṣe bhadram apnaḥ ||

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Pad Path

उषः॑। यत्। अ॒ग्निम्। स॒म्ऽइधे॑। च॒कर्थ॑। वि। यत्। आवः॑। चक्ष॑सा। सूर्य॑स्य। यत्। मानु॑षान्। य॒क्ष्यमा॑णान्। अजी॑ग॒रिति॑। तत्। दे॒वेषु॑। च॒कृ॒षे॒। भ॒द्रम्। अप्नः॑ ॥ १.११३.९

Rigveda » Mandal:1» Sukta:113» Mantra:9 | Ashtak:1» Adhyay:8» Varga:2» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:16» Mantra:9


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (उषः) प्रभात वेला के समान वर्त्तमान विदुषि स्त्रि ! (यत्) जो तू (सूर्य्यस्य) सूर्य्य के (चक्षसा) प्रकाश से (समिधे) अच्छे प्रकार प्रकाश के लिये (अग्निम्) विद्युत् अग्नि को प्रदीप्त (चकर्थ) करती है वा (यत्) जो तू दुःखों को (वि, आवः) दूर करती वा (यत्) जो तू (यक्ष्यमाणान्) यज्ञ के करनेवाले (मानुषान्) मनुष्यों को (अजीगः) प्राप्त होकर प्रसन्न करती है (तत्) सो तू (देवेषु) विद्वान् पतियों में वसकर (भद्रम्) कल्याण करनेहारे (अप्नः) सन्तानों को उत्पन्न (चकृषे) किया कर ॥ ९ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे सूर्य्य की संबन्धिनी प्रातःकाल की वेला सब प्राणियों के साथ संयुक्त होकर सब जीवों को सुखी करती है, वैसे सज्जन विदुषी स्त्री अपने पतियों को प्रसन्न करती हुईं उत्तम सन्तानों के उत्पन्न करने को समर्थ होती हैं, इतर दुष्ट भार्य्या वैसा काम नहीं कर सकतीं ॥ ९ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे उषर्वद्वर्त्तमाने यद्यात्वं सूर्य्यस्य चक्षसा समिधेऽग्निं चकर्थ, यद्या दुःखानि व्यावः, यद्या यक्ष्यमाणान्मानुषानजीगः प्रीणासि तत् सा त्वं देवेषु पतिषु भद्रमप्नश्चकृषे कुर्याः ॥ ९ ॥

Word-Meaning: - (उषः) प्रातर्वत् (यत्) या (अग्निम्) विद्युदग्निम् (समिधे) सम्यक्प्रदीपनाय (चकर्थ) करोषि (वि) (यत्) या (आवः) वृणोषि (चक्षसा) प्रकाशेन (सूर्य्यस्य) मार्तण्डस्य (यत्) या (मानुषान्) मनुष्यान् (यक्ष्यमाणान्) यज्ञं निवर्त्स्यतः (अजीगः) प्रसन्नान् करोति (तत्) सा (देवेषु) विद्वत्सु पतिषु पालकेषु सत्सु (चकृषे) कुर्याः (भद्रम्) कल्याणम् (अप्नः) अपत्यम् ॥ ९ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा सूर्यस्य सम्बन्धिन्युषाः सर्वैः प्राणिभिः सङ्गत्य सर्वाञ्जीवान् सुखयति तथा साध्व्यो विदुष्यः स्त्रियः पतीन् प्रीणयन्त्यः सत्यः प्रशस्तान्यपत्यानि जनयितुं शक्नुवन्ति नेतराः कुमार्य्यः ॥ ९ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. सूर्याशी निगडित असलेली प्रातःकालीन उषा सर्व प्राण्यांशी संलग्न होते व सर्व जीवांना सुखी करते. तसे सद्गुणी विदुषी स्त्रिया आपल्या पतींना प्रसन्न करून उत्तम संताने निर्माण करण्यास समर्थ बनतात. इतर दुष्ट स्त्रिया तसे करू शकत नाहीत. ॥ ९ ॥