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व्य१॒॑ञ्जिभि॑र्दि॒व आता॑स्वद्यौ॒दप॑ कृ॒ष्णां नि॒र्णिजं॑ दे॒व्या॑वः। प्र॒बो॒धय॑न्त्यरु॒णेभि॒रश्वै॒रोषा या॑ति सु॒युजा॒ रथे॑न ॥

English Transliteration

vy añjibhir diva ātāsv adyaud apa kṛṣṇāṁ nirṇijaṁ devy āvaḥ | prabodhayanty aruṇebhir aśvair oṣā yāti suyujā rathena ||

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Pad Path

वि। अ॒ञ्जिऽभिः॑। दि॒वः। आता॑सु। अ॒द्यौ॒त्। अप॑। कृ॒ष्णाम्। निः॒ऽनिज॑म्। दे॒वी। आ॒व॒रित्या॑वः। प्र॒ऽबो॒धय॑न्ती। अ॒रु॒णेभिः॑। अश्वैः॑। आ। उ॒षाः। या॒ति॒। सु॒ऽयुजा॑। रथे॑न ॥ १.११३.१४

Rigveda » Mandal:1» Sukta:113» Mantra:14 | Ashtak:1» Adhyay:8» Varga:3» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:16» Mantra:14


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे स्त्रीजनो ! तुम जैसे (प्रबोधयन्ती) सोतों को जगाती हुई (देवी) दिव्यगुणयुक्त (उषाः) प्रातःसमय की वेला (अञ्जिभिः) प्रकट करनेहारे गुणों के साथ (दिवः) आकाश से (आतासु) सर्वत्र व्याप्त दिशाओं में सब पदार्थों को (व्यद्यौत्) विशेष कर प्रकाशित करती (निर्णिजम्) वा निश्चितरूप (कृष्णाम्) कृष्णवर्ण रात्रि को (अपावः) दूर करती वा (अरुणेभिः) रक्तादि गुणयुक्त (अश्वैः) व्यापनशील किरणों के साथ वर्त्तमान (सुयुजा) अच्छे युक्त (रथेन) रमणीय स्वरूप से (आ, याति) आती है, उसके समान तुम लोग वर्त्ता करो ॥ १४ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे प्रातःसमय की वेला दिशाओं में व्याप्त है, वैसे कन्या लोग विद्याओं में व्याप्त होवें, वा जैसे यह उषा अपनी कान्तियों से शोभायमान होकर रमणीय स्वरूप से प्रकाशमान रहती है, वैसे यह कन्याजन अपने शील आदि गुण और सुन्दर रूप से प्रकाशमान हों, जैसे यह उषा अन्धकार के निवारणरूप प्रकाश को उत्पन्न करती है, वैसे ये कन्याजन मूर्खता आदि का निवारण कर सुसभ्यतादि शुभ गुणों से सदा प्रकाशित रहें ॥ १४ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे स्त्रियो यूयं यथा प्रबोधयन्ती देव्युषा अञ्जिभिर्दिव आतासु सर्वान् पदार्थान् व्यद्यौत् निर्णिजं कृष्णामपावः अरुणेभिरश्वैः सह वर्त्तमानेन सुयुजा रथेनायाति तद्वद्वर्त्तध्वम् ॥ १४ ॥

Word-Meaning: - (वि) (अञ्जिभिः) प्रकटीकरणैर्गुणैः (दिवः) आकाशात् (आतासु) व्याप्तासु दिक्षु। आता इति दिङ्नामसु पठितम्। निघं० १। ६। (अद्यौत्) विद्योतयति प्रकाशते (अप) (कृष्णाम्) रात्रिम् (निर्णिजम्) रूपम्। निर्णिगिति रूपनामसु पठितम्। निघं० ३। ७। (देवी) दिव्यगुणा (आवः) निवारयति (प्रबोधयन्ती) जागरणं प्रापयन्ती (अरुणेभिः) ईषद्रक्तैः (अश्वैः) व्यापनशीलैः किरणैः (आ) (उषाः) (याति) (सयुजा) सुष्ठुयुक्तेन (रथेन) रमणीयस्वरूपेण ॥ १४ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथोषाः काष्ठासु व्याप्ताऽस्ति तथा कन्या विद्यासु व्याप्नुयुः। यथेयमुषाः स्वकान्तिभिः सुशोभना रमणीयेन स्वरूपेण प्रकाशते तथैताः स्वशीलादिभिः सुन्दरेण रूपेण शुम्भेयुः। यथेयमुषा अन्धकारनिवारणप्रकाशं जनयति तथैता मौर्ख्यं निवार्य सुसभ्यतादिगुणैः प्रकाशन्ताम् ॥ १४ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जशी प्रातःकाळची वेळ दिशांमध्ये व्याप्त आहे तशा कन्या विद्येत व्याप्त व्हाव्यात. जशी ही उषा आपल्या कांतीने शोभायमान होऊन रमणीय स्वरुपाने प्रकाशमान असते तसे या कन्या आपले शील इत्यादी गुण व सुंदर रुपाने प्रकाशित व्हाव्यात. जशी उषा अंधकाराचे निवारण करून प्रकाश उत्पन्न करते तसे या कन्या अविद्या इत्यादीचे निवारण करून सुसभ्यता इत्यादी शुभ गुणांनी सदैव प्रकाशित व्हाव्यात. ॥ १४ ॥