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याभि॒: शची॑भिर्वृषणा परा॒वृजं॒ प्रान्धं श्रो॒णं चक्ष॑स॒ एत॑वे कृ॒थः। याभि॒र्वर्ति॑कां ग्रसि॒ताममु॑ञ्चतं॒ ताभि॑रू॒ षु ऊ॒तिभि॑रश्वि॒ना ग॑तम् ॥

English Transliteration

yābhiḥ śacībhir vṛṣaṇā parāvṛjam prāndhaṁ śroṇaṁ cakṣasa etave kṛthaḥ | yābhir vartikāṁ grasitām amuñcataṁ tābhir ū ṣu ūtibhir aśvinā gatam ||

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Pad Path

याभिः॑। शची॑भिः। वृ॒ष॒णा॒। प॒रा॒ऽवृज॑म्। प्र। अ॒न्धम्। श्रो॒णम्। चक्ष॑से। एत॑वे। कृ॒थः। याभिः॑। वर्ति॑काम्। ग्र॒सि॒ताम्। अमु॑ञ्चतम्। ताभिः॑। ऊँ॒ इति॑। सु। ऊ॒तिऽभिः॑। अ॒श्वि॒ना॒। आ। ग॒त॒म् ॥ १.११२.८

Rigveda » Mandal:1» Sukta:112» Mantra:8 | Ashtak:1» Adhyay:7» Varga:34» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:16» Mantra:8


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब सभा और सेना के अध्यक्ष क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (वृषणा) सुख के वर्षानेहारे (अश्विना) सभा और सेना के अधीशो ! तुम (याभिः) जिन (शचीभिः) रक्षा सम्बन्धी कामों और प्रजाओं से (परावृजम्) विरोध करनेहारे (अन्धम्) अविद्यान्धकारयुक्त (श्रोणम्) बधिर के तुल्य वर्त्तमान पुरुष को (चक्षसे) विद्यायुक्त वाणी के प्रकाश के लिये (एतवे) शुभ विद्या प्राप्त होने को (प्र, कृथः) अच्छे प्रकार योग्य करो और (याभिः) जिन रक्षाओं से (ग्रसिताम्) निगली हुई (वर्त्तिकाम्) छोटी चिड़िया के समान प्रजा को दुःखों से (अमुञ्चतम्) छुड़ाओ (ताभिरु) उन्हीं (ऊतिभिः) रक्षाओं से हम लोगों को (सु, आ, गतम्) अच्छे प्रकार प्राप्त हूजिये ॥ ८ ॥
Connotation: - सभा और सेना के पति को योग्य है कि अपनी विद्या और धर्म के आश्रय से प्रजाओं में विद्या और विनय का प्रचार करके अविद्या और अधर्म के निवारण से सब प्राणियों को अभयदान निरन्तर किया करें ॥ ८ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ सभासेनाध्यक्षौ किं कुर्यातामित्युपदिश्यते ।

Anvay:

हे वृषणाश्विना सभासेनाध्यक्षौ युवां याभिः शचीभिः परावृजमन्धं श्रोणं च चक्षस एतवे विद्यां गन्तुं प्रकृथः। याभिर्ग्रसितां वर्त्तिकामिव प्रजाममुञ्चतं ताभिरू० इति पूर्ववत् ॥ ८ ॥

Word-Meaning: - (याभिः) वक्ष्यमाणाभिः (शचीभिः) रक्षाकर्मभिः प्रज्ञाभिर्वा। शचीति कर्मना०। निघं० २। १। प्रज्ञाना०। निघं० ३। ९। (वृषणा) वर्षयितारौ। अत्राकारादेशः। (परावृजम्) धर्मविरुद्धगामिनम् (प्र) (अन्धम्) अविद्यान्धकारयुक्तम् (श्रोणम्) वधिरवद्वर्त्तमानं पुरुषम् (चक्षसे) विद्यायुक्तवाण्याः प्रकाशाय (एतवे) एतुं गन्तुम् (कृथः) कुरुतम्। अत्र लोडर्थे लट् विकरणस्य लुक् च। (याभिः) (वर्त्तिकाम्) शकुनिस्त्रियम् (ग्रसिताम्) निगलिताम् (अमुञ्चतम्) मुञ्चतम्। अत्र लोडर्थे लङ्। (ताभिः) (उ) (सु) सुष्ठु गतौ (ऊतिभिः) रक्षणादिभिः (अश्विना) द्यावापृथिवीवच्छुभगुणकर्मस्वभावव्यापिनौ। अत्राऽऽकारादेशः। (आ) समन्तात् (गतम्) गच्छतम्। अत्र विकरणलोपश्च ॥ ८ ॥
Connotation: - सभासेनापतिभ्यां स्वविद्याधर्माश्रयेण प्रजासु विद्याविनयौ प्रचार्याविद्याऽधर्मनिवारणेन सर्वेभ्योऽभयदानं सततं कार्यम् ॥ ८ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - सभा व सेनापतीने आपली विद्या व धर्माचा आश्रय घेऊन प्रजेमध्ये विद्या व विनय यांचा प्रसार करावा. अविद्या व अधर्माचे निवारण करून सर्व प्राण्यांना सतत अभयदान द्यावे. ॥ ८ ॥