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याभि॒: परि॑ज्मा॒ तन॑यस्य म॒ज्मना॑ द्विमा॒ता तू॒र्षु त॒रणि॑र्वि॒भूष॑ति। याभि॑स्त्रि॒मन्तु॒रभ॑वद्विचक्ष॒णस्ताभि॑रू॒ षु ऊ॒तिभि॑रश्वि॒ना ग॑तम् ॥

English Transliteration

yābhiḥ parijmā tanayasya majmanā dvimātā tūrṣu taraṇir vibhūṣati | yābhis trimantur abhavad vicakṣaṇas tābhir ū ṣu ūtibhir aśvinā gatam ||

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Pad Path

याभिः॑। परि॑ऽज्मा। तन॑यस्य। म॒ज्मना॑। द्वि॒ऽमा॒ता। तू॒र्षु। त॒रणिः॑। वि॒ऽभूष॑ति। याभिः॑। त्रि॒ऽमन्तुः॑। अभ॑वत्। वि॒ऽच॒क्ष॒णः। ताभिः॑। ऊँ॒ इति॑। सु। ऊ॒तिऽभिः॑। अ॒श्वि॒ना॒। आ। ग॒त॒म् ॥ १.११२.४

Rigveda » Mandal:1» Sukta:112» Mantra:4 | Ashtak:1» Adhyay:7» Varga:33» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:16» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वे दोनों कैसे हैं, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (अश्विना) विद्या और उपदेश की प्राप्ति करानेहारे विद्वान् लोगो ! (याभिः) जिनसे (द्विमाता) दोनों अग्नि और जल का प्रमाण करनेवाला (तूर्षु) शीघ्र करनेवालों में (तरणिः) उछलता सा अतीव वेगवाला (परिज्मा) सर्वत्र गमन करता वायु (तनयस्य) अपने से उत्पन्न अग्नि के (मज्मना) बल से (सु, विभूषति) अच्छे प्रकार सुशोभित होता (उ) और (याभिः) जिनसे (त्रिमन्तुः) कर्म, उपासना और ज्ञान विद्या को माननेहारा (विचक्षणः) विविध प्रकार से सब विद्याओं को प्रत्यक्ष करानेहारा (अभवत्) होवे (ताभिः) उन (ऊतिभिः) रक्षाओं से सहित सब हम लोगों को विद्या देने के लिये (आ, गतम्) प्राप्त हूजिये ॥ ४ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्यों को योग्य है कि प्राण के समान प्रीति और संन्यासियों के समान उपकार करने से सबके लिये विद्या की उन्नति किया करें ॥ ४ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तौ कीदृशावित्युपदिश्यते ।

Anvay:

हे अश्विना युवां याभिरूतिभिर्द्विमाता तूर्षु तरणिः परिज्मा वायुस्तनस्य मज्मना सुविभूषत्यु याभिरूतिभिस्त्रिमन्तुर्विचक्षणोऽभवद् भवेत् ताभिरूतिभिः सर्वानस्मान् विद्यादानायाऽगतम् ॥ ४ ॥

Word-Meaning: - (याभिः) (परिज्मा) परितः सर्वतो गन्ता वायुः (तनयस्य) अपत्यस्याग्नेः (मज्मना) बलेन (द्विमाता) द्वयोरग्निजलयोर्माता प्रमापकः (तूर्षु) शीघ्रकारिषु (तरणिः) प्लविताऽतिवेगवान् (विभूषति) अलङ्करोति (याभिः) (त्रिमन्तुः) तिसृणां कर्मोपासनाज्ञानविद्यानां मन्तुर्मन्ता (अभवत्) भवेत् (विचक्षणः) विविधतया दर्शकः (ताभिः०) इत्यादि पूर्ववत् ॥ ४ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। मनुष्यैः प्राणवत् प्रियत्वेन संन्यासिवदुपकारकत्वेन सर्वेभ्यो विद्योन्नतिः संपादनीया ॥ ४ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. माणसांनी प्राणाप्रमाणे प्रेम व संन्याशाप्रमाणे उपकार करून सर्वांसाठी विद्यावृद्धी करावी. ॥ ४ ॥