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याभि॑रङ्गिरो॒ मन॑सा निर॒ण्यथोऽग्रं॒ गच्छ॑थो विव॒रे गोअ॑र्णसः। याभि॒र्मनुं॒ शूर॑मि॒षा स॒माव॑तं॒ ताभि॑रू॒ षु ऊ॒तिभि॑रश्वि॒ना ग॑तम् ॥

English Transliteration

yābhir aṅgiro manasā niraṇyatho graṁ gacchatho vivare goarṇasaḥ | yābhir manuṁ śūram iṣā samāvataṁ tābhir ū ṣu ūtibhir aśvinā gatam ||

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Pad Path

याभिः॑। अ॒ङ्गि॒रः॒। मन॑सा। नि॒ऽर॒ण्यथः॑। अग्र॑म्। गच्छ॑थः। वि॒ऽव॒रे। गोऽअ॑र्णसः। याभिः॑। मनु॒म्। शूरम्। इ॒षा। स॒म्ऽआव॑तम्। ताभिः॑। ऊँ॒ इति॑। सु। ऊ॒तिऽभिः॑। अ॒श्वि॒ना॒। आ। ग॒त॒म् ॥ १.११२.१८

Rigveda » Mandal:1» Sukta:112» Mantra:18 | Ashtak:1» Adhyay:7» Varga:36» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:16» Mantra:18


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब सब राजजनों को किसके तुल्य सुख भोगने चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (अङ्गिरः) जाननेहारे विद्वान् ! तू (मनसा) विज्ञान से विद्या और धर्म्म का सबको बोध करा। हे (अश्विना) सेना के पालन और युद्ध करानेहारे जन ! तुम (याभिः) जिन (ऊतिभिः) रक्षाओं के साथ (गोअर्णसः) पृथिवी जल के (विवरे) अवकाश में (निरण्यथः) संग्राम करते और (अग्रम्) उत्तम विजय को (गच्छथः) प्राप्त होते वा (याभिः) जिन रक्षाओं से (शूरम्) शूरवीर (मनुम्) मननशील मनुष्य को (समावतम्) सम्यक् रक्षा करो (ताभिरु) उन्हीं रक्षा और (इषा) इच्छा से हमारी रक्षा के लिये (सु, आ, गतम्) उचित समय पर आया कीजिये ॥ १८ ॥
Connotation: - जैसे विद्वान् विज्ञान से सब सुखों को सिद्ध करता है वैसे सब राजपुरुषों को अनेक साधनों से पृथिवी, नदी और समुद्र से आकाश के मध्य में शत्रुओं को जीत के सुखों को अच्छे प्रकार प्राप्त होना चाहिये ॥ १८ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ सर्वै राजजनैः किंवत्सुखानि भोग्यानीत्याह ।

Anvay:

हे अङ्गिरस्त्वं मनसा विद्याधर्मौ सर्वान् बोधय। हे अश्विना सेनापालकयोधयितारौ युवां याभिरूतिभिर्गौ अर्णसो विवरे निरण्यथोऽग्रं गच्छथो याभिः शूरं मनुं समावतं ताभिरु इषाऽस्मद्रक्षणाय स्वागतम् ॥ १८ ॥

Word-Meaning: - (याभिः) (अङ्गिरः) अङ्गति जानाति यो विद्वांस्तत्सम्बुद्धौ (मनसा) विज्ञानेन (निरण्यथः) नित्यं रणथो युद्धमाचरथः। अत्र विकरणव्यत्ययेन श्यन्। (अग्रम्) उत्तमविजयम् (गच्छथः) (विवरे) अवकाशे (गोअर्णसः) गौः पृथिव्या जलस्य च। अत्र सर्वत्र विभाषा गोरिति प्रकृतिभावः। (याभिः) (मनुम्) युद्धज्ञातारम् (शूरम्) शत्रुहिंसकम् (इषा) इच्छया (समावतम्) सम्यग् रक्षतम् (ताभिः०) इति पूर्ववत् ॥ १८ ॥
Connotation: - यथा विद्वान् विज्ञानेन सर्वाणि सुखानि साध्नोति तथा सर्वै राजजनैरनेकैः साधनैः पृथिव्या नदीसमुद्रादाकाशस्य मध्ये शत्रून् विजित्य सुखानि सुष्ठु गन्तव्यानि ॥ १८ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जसा विद्वान विज्ञानाने सर्व सुख सिद्ध करतो तसे सर्व राजपुरुषांनी अनेक साधनांनी पृथ्वी, आकाश समुद्रामध्ये शत्रूंना जिंकून चांगल्या प्रकारे सुख प्राप्त करावे. ॥ १८ ॥