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याभि॑र्म॒हाम॑तिथि॒ग्वं क॑शो॒जुवं॒ दिवो॑दासं शम्बर॒हत्य॒ आव॑तम्। याभि॑: पू॒र्भिद्ये॑ त्र॒सद॑स्यु॒माव॑तं॒ ताभि॑रू॒ षु ऊ॒तिभि॑रश्वि॒ना ग॑तम् ॥

English Transliteration

yābhir mahām atithigvaṁ kaśojuvaṁ divodāsaṁ śambarahatya āvatam | yābhiḥ pūrbhidye trasadasyum āvataṁ tābhir ū ṣu ūtibhir aśvinā gatam ||

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Pad Path

याभिः॑। म॒हाम्। अ॒ति॒थि॒ऽग्वम्। क॒शः॒ऽजुव॑म्। दिवः॑ऽदासम्। श॒म्ब॒र॒ऽहत्ये॑। आव॑तम्। याभिः॑। पूः॒ऽभिद्ये॑। त्र॒सद॑स्युम्। आव॑तम्। ताभिः॑। ऊँ॒ इति॑। सु। ऊ॒तिऽभिः॑। अ॒श्वि॒ना॒। आ। ग॒त॒म् ॥ १.११२.१४

Rigveda » Mandal:1» Sukta:112» Mantra:14 | Ashtak:1» Adhyay:7» Varga:35» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:16» Mantra:14


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब प्रजा सेनाजन और सभाध्यक्ष को परस्पर क्या-क्या करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (अश्विना) राजा और प्रजा में शूरवीर पुरुषो ! तुम दोनों (शम्बरहत्ये) सेना वा दूसरे के बल पराक्रम का मारना जिसमें हो उस युद्धादि व्यवहार में (याभिः) जिन (ऊतिभिः) रक्षाओं से (महाम्) बड़े प्रशंसनीय (अतिथिग्वम्) अतिथियों को प्राप्त होने, (कशोजुवम्) जलों को चलाने और (दिवोदासम्) दिव्य विद्यारूप क्रियाओं के देनेवाले सेनापति की (आवतम्) रक्षा करो, वा जिन रक्षाओं से (पूर्भिद्ये) शत्रुओं के नगर विदीर्ण हों जिससे उस संग्राम में (त्रसदस्युम्) डाकुओं से डरे हुए श्रेष्ठ जन की (आवतम्) रक्षा करो, (ताभिः) उन्हीं रक्षाओं से हमारी रक्षा के लिये (सु, आ, गतम्) अच्छे प्रकार आइये ॥ १४ ॥
Connotation: - प्रजा और सेना के मनुष्यों को योग्य है कि सब विद्या में निपुण धार्मिक पुरुष को सभापति कर उसकी सब प्रकार रक्षा करके सबको भय देनेवाले दुष्ट डांकू को मारके आप सुखों को प्राप्त हों और सबको सुखी करें ॥ १४ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ प्रजासेनाजनसभाध्यक्षैः परस्परं किं किं कर्त्तव्यमित्याह ।

Anvay:

हे अश्विना राजप्रजयोः शूरवीरजनौ युवां शम्बरहत्ये याभिरूतिभिर्महामतिथिग्वं कशोजुवं दिवोदासं सेनापतिमावतम्। याभिः पूर्भिद्ये त्रसदस्युमावतं ताभिरु स्वागतम् ॥ १४ ॥

Word-Meaning: - (याभिः) (महाम्) महान्तम् पूज्यम् (अतिथिग्वम्) अतिथीन् प्राप्नुवन्तम् (कशोजुवम्) कशांस्युदकानि जवयति गमयति तम्। कश इत्युदकना०। निघं० १। १२। (दिवोदासम्) दिवो विद्याधर्मप्रकाशस्य दातारम्। दिवश्च दास उपसंख्यानम्। अ० ६। ३। २१। इति षष्ठ्या अलुक्। (शम्बरहत्ये) शम्बरस्य बलस्य हत्या हननं यस्मिन् युद्धादिव्यवहारे तस्मिन्। शम्बरमिति बलनामसु पठितम्। निघं० २। ९। (आवतम्) रक्षतम् (याभिः) क्रियाभिः (पूर्भिद्ये) शत्रूणां पुराणि भिद्यन्ते यस्मिन् संग्रामे तस्मिन् (त्रसदस्युम्) यो दस्युभ्यस्त्रस्यति तम् (आवतम्) रक्षतम्। ताभिरिति पूर्ववत् ॥ १४ ॥
Connotation: - प्रजासेनाजनैः सकलविद्यं धार्मिकं पुरुषं सभापतिं कृत्वा संरक्ष्य सर्वस्मै दुष्टं तस्करं हत्वा सुखानि प्राप्तव्यानि प्रापयितव्यानि च ॥ १४ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - प्रजा व सेनेतील लोकांनी सर्व विद्येत निपुण धार्मिक पुरुषाला सभापती बनवून, त्याचे सर्व प्रकारे रक्षण करून सर्वांना भयभीत करणाऱ्या दुष्ट दुर्जनांना मारून सुखी व्हावे व सर्वांना सुखी करावे. ॥ १४ ॥