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याभी॑ र॒सां क्षोद॑सो॒द्नः पि॑पि॒न्वथु॑रन॒श्वं याभी॒ रथ॒माव॑तं जि॒षे। याभि॑स्त्रि॒शोक॑ उ॒स्रिया॑ उ॒दाज॑त॒ ताभि॑रू॒ षु ऊ॒तिभि॑रश्वि॒ना ग॑तम् ॥

English Transliteration

yābhī rasāṁ kṣodasodnaḥ pipinvathur anaśvaṁ yābhī ratham āvataṁ jiṣe | yābhis triśoka usriyā udājata tābhir ū ṣu ūtibhir aśvinā gatam ||

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Pad Path

याभिः॑। र॒साम्। क्षोद॑सा। उ॒द्गः। पि॒पि॒न्वथुः॑। अ॒न॒श्वम्। याभिः॑। रथ॑म्। आव॑तम्। जि॒षे। याभिः॑। त्रि॒ऽशोकः॑। उ॒स्रियाः॑। उ॒त्ऽआज॑त। ताभिः॑। ऊँ॒ इति॑। सु। ऊ॒तिऽभिः॑। अ॒श्वि॒ना॒। आ। ग॒त॒म् ॥ १.११२.१२

Rigveda » Mandal:1» Sukta:112» Mantra:12 | Ashtak:1» Adhyay:7» Varga:35» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:16» Mantra:12


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब शिल्प दृष्टान्त से सभापति और सेनापति के काम का उपदेश किया है ।

Word-Meaning: - हे (अश्विना) अध्यापक और उपदेशको ! आप दोनों (याभिः) जिन शिल्प क्रियाओं से (उद्नः) जल के (क्षोदसा) प्रवाह के साथ (रसाम्) जिसमें प्रशंसित जल विद्यमान हो उस नदी को (पिपिन्वथुः) पूरी करो अर्थात् नहर आदि के प्रबन्ध से उसमें जल पहुँचाओ, वा (याभिः) जिन आने-जाने की चालों से (जिषे) शत्रुओं को जीतने के लिये (अनश्वम्) विन घोड़ों के (रथम्) विमान आदि रथसमूह को (आवतम्) राखो, वा (याभिः) जिन सेनाओं से (त्रिशोकः) जिनको दुष्ट गुण, कर्म, स्वभावों में शोक है वह विद्वान् (उस्रियाः) किरणों में हुए विद्युत् अग्नि की चिलकों को (उदाजत) ऊपर को पहुँचावे, (ताभिरु) उन्हीं (ऊतिभिः) सब रक्षारूप उक्त वस्तुओं से (स्वागतम्) हम लोगों के प्रति अच्छे प्रकार आइये ॥ १२ ॥
Connotation: - जैसे सब शिल्पशास्त्रों में चतुर विद्वान् विमानादि यानों में कलायन्त्रों को रच के, उनमें जल विद्युत् आदि का प्रयोग कर, यन्त्र से कलाओं को चला, अपने अभीष्ट स्थान में जाना-आना करता है, वैसे ही सभा सेना के प्रति किया करें ॥ १२ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ शिल्पदृष्टान्तेन सभासेनापतिकृत्यमुपदिश्यते ।

Anvay:

हे अश्विना युवां याभिरुद्नः क्षोदसा रसां पिपिन्वथुर्याभिर्जिषेऽनश्वं रथमावतं याभिर्वा त्रिशोको विद्वानुस्रिया उदाजत ताभिरु ऊतिभिः स्वागतम् ॥ १२ ॥

Word-Meaning: - (याभिः) शिल्पक्रियाभिः (रसाम्) प्रशस्तं रसं जलं विद्यते यस्यां ताम्। रस इति उदकना०। (निघं०) १। १२। अत्रार्शआदित्वान्मत्वर्थीयोऽच्। (क्षोदसा) प्रवाहेण (उद्नः) जलस्य (पिपिन्वथुः) पिपूर्त्तम् (अनश्वम्) अविद्यमाना अश्वा तुरङ्गादयो यस्मिन् (याभिः) गमनागमनाख्याभिर्गतिभिः (रथम्) विमानादियानसमूहम् (आवतम्) रक्षतम् (जिषे) शत्रून् जेतुम् (याभिः) सेनाभिः (त्रिशोकः) त्रिषु दुष्टगुणकर्मस्वभावेषु शोको यस्य विदुषः सः (उस्रियाः) उस्रासु रश्मिषु भवा विद्युतः। उस्रा इति रश्मिना०। (निघं०) १। ५। (उदाजय) ऊर्द्धं समन्तात् क्षिपतु। अत्र लोडर्थे लङ्। ताभिरित्यादि पूर्ववत् ॥ १२ ॥
Connotation: - यथा सर्वशिल्पशास्त्रकुशलो विद्वान् विमानादियानेषु कलायन्त्राणि रचयित्वा तेषु जलविद्युदादीन् प्रयुज्य यन्त्रैः कलाः संचाल्य स्वाभीष्टे गमनागमने करोति तथैव सभासेनापती आचरेताम् ॥ १२ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जसा सर्व शिल्पशास्त्रात चतुर असलेला विद्वान विमान इत्यादी यानात कलायंत्रांना निर्माण करून त्यात जल, विद्युत इत्यादीचा प्रयोग करून यंत्राने कळा फिरवून आपल्या अभीष्ट स्थानी जाणे-येणे करतो. तसेच सभेच्या सेनापतीने करावे. ॥ १२ ॥