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निश्चर्म॑ण ऋभवो॒ गाम॑पिंशत॒ सं व॒त्सेना॑सृजता मा॒तरं॒ पुन॑:। सौध॑न्वनासः स्वप॒स्यया॑ नरो॒ जिव्री॒ युवा॑ना पि॒तरा॑कृणोतन ॥

English Transliteration

niś carmaṇa ṛbhavo gām apiṁśata saṁ vatsenāsṛjatā mātaram punaḥ | saudhanvanāsaḥ svapasyayā naro jivrī yuvānā pitarākṛṇotana ||

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Pad Path

निः। चर्म॑णः। ऋ॒भ॒वः॒। गाम्। अ॒पिं॒श॒त॒। सम्। व॒त्सेन॑। अ॒सृ॒ज॒त॒। मा॒तर॑म्। पुन॒रिति॑। सौध॑न्वनासः। सु॒ऽअ॒प॒स्यया॑। नरः॑। जिव्री॒ इति॑। युवा॑ना। पि॒तरा॑। अ॒कृ॒णो॒त॒न॒ ॥ १.११०.८

Rigveda » Mandal:1» Sukta:110» Mantra:8 | Ashtak:1» Adhyay:7» Varga:31» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:16» Mantra:8


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वे विद्वान् क्या करें, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (ऋभवः) बुद्धिमान् मनुष्यो ! तुम (चर्मणः) चाम से (गाम्) गौ को (निरपिंशत) निरन्तर अवयवी करो अर्थात् उसके चाम आदि को खिलाने-पिलाने से पुष्ट करो (पुनः) फिर (वत्सेन) उसके बछड़े के साथ (मातरम्) उस माता गौ को (समसृजत) युक्त करो। हे (सौधन्वनासः) धनुर्वेदविद्याकुशल (नरः) और व्यवहारों को यथायोग्य वर्त्तानेवाले विद्वानो ! तुम (स्वपस्यया) सुन्दर जिसमें काम बने उस चतुराई से (जिव्री) अच्छे जीवनयुक्त बुड्ढे (पितरा) अपने मा-बाप को (युवाना) युवावस्थावालों के सदृश (अकृणोतन) निरन्तर करो ॥ ८ ॥
Connotation: - पिछले कहे हुए काम के विना कोई भी राज्य नहीं कर सकते, इससे मनुष्यों को चाहिये कि उन कामों का सदा अनुष्ठान किया करें ॥ ८ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्ते विद्वांसः किं कुर्य्युरित्युपदिश्यते ।

Anvay:

हे ऋभवो मेधाविनो मनुष्या यूयं चर्मणो गां निरपिंशत पुनर्वत्सेन मातरं समसृजत। हे सौधन्वनासो नरो यूयं स्वपस्यया जिव्री वृद्धौ पितरा युवानाऽकृणोतन ॥ ८ ॥

Word-Meaning: - (निः) नितराम् (चर्मणः) (ऋभवः) मेधाविनः (गाम्) (अपिंशत) अवयवीकुरुत (सम्) (वत्सेन) तद्बालेन सह (असृजत)। अत्रान्येषामपीति दीर्घः। (मातरम्) (पुनः) (सौधन्वनासः) शोभनेषु धन्वसु धनुर्विद्यास्विमे कुशलाः (स्वपस्यया) शोभनान्यपांसि कर्माणि यस्यां तया (नरः) नायका विद्वांसः (जिव्री) सुजीवनयुक्तौ (युवाना) युवानौ युवसदृशौ (पितरा) मातापितरौ (अकृणोतन) कुरुत ॥ ८ ॥
Connotation: - नहि पूर्वोक्तेन कर्मणा विना केचिद्राज्यं कर्त्तुं शक्नुवन्ति तस्मादेतन्मनुष्यैः सदाऽनुष्ठेयम् ॥ ८ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - यापूर्वी सांगितलेल्या कार्याशिवाय कोणीही राज्य करू शकत नाही. त्यासाठी माणसांनी त्या कामांचे सदैव अनुष्ठान करावे. ॥ ८ ॥