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मा॒याभि॑रिन्द्र मा॒यिनं॒ त्वं शुष्ण॒मवा॑तिरः। वि॒दुष्टे॒ तस्य॒ मेधि॑रा॒स्तेषां॒ श्रवां॒स्युत्ति॑र॥

English Transliteration

māyābhir indra māyinaṁ tvaṁ śuṣṇam avātiraḥ | viduṣ ṭe tasya medhirās teṣāṁ śravāṁsy ut tira ||

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Pad Path

मा॒याभिः॑। इ॒न्द्र॒। मा॒यिन॑म्। त्वम्। शुष्ण॑म्। अव॑। अ॒ति॒रः॒। वि॒दुः। ते॒। तस्य॑। मेधि॑राः। तेषा॑म्। श्रवां॑सि। उत्। ति॒र॒॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:11» Mantra:7 | Ashtak:1» Adhyay:1» Varga:21» Mantra:7 | Mandal:1» Anuvak:3» Mantra:7


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर भी अगले मन्त्र में सूर्य्य के गुणों का उपदेश किया है-

Word-Meaning: - हे परमैश्वर्य्य को प्राप्त कराने तथा शत्रुओं की निवृत्ति करनेवाले शूरवीर मनुष्य ! (त्वम्) तू उत्तम बुद्धि सेना तथा शरीर के बल से युक्त हो के (मायाभिः) विशेष बुद्धि के व्यवहारों से (शुष्णम्) जो धर्मात्मा सज्जनों का चित्त व्याकुल करने (मायिनम्) दुर्बुद्धि दुःख देनेवाला सब का शत्रु मनुष्य है, उसका (अवातिर) पराजय किया कर, (तस्य) उसके मारने में (मेधिराः) जो शस्त्रों को जानने तथा दुष्टों को मारने में अति निपुण मनुष्य हैं, वे (ते) तेरे संगम से सुखी और अन्नादि पदार्थों को प्राप्त हों, (तेषाम्) उन धर्मात्मा पुरुषों के सहाय से शत्रुओं के बलों को (उत्तिर) अच्छी प्रकार निवारण कर॥७॥
Connotation: - बुद्धिमान् मनुष्यों को ईश्वर आज्ञा देता है कि-साम, दाम, दण्ड और भेद की युक्ति से दुष्ट और शत्रुजनों की निवृत्ति करके विद्या और चक्रवर्त्ति राज्य की यथावत् उन्नति करनी चाहिये। तथा जैसे इस संसार में कपटी, छली और दुष्ट पुरुष वृद्धि को प्राप्त न हों, वैसा उपाय निरन्तर करना चाहिये॥७॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तद्गुणा उपदिश्यन्ते।

Anvay:

हे इन्द्र शूरवीर ! त्वं मायाभिः शुष्णं मायिनं शत्रुमवतिरस्तस्य हनने ये मेधिरास्ते तव सङ्गमेन सुखिनो भूत्वा श्रवांसि प्राप्नुवन्तु, त्वं तेषां सहायेनारीणां बलान्युत्तिरोत्कृष्टतया निवारय॥७॥

Word-Meaning: - (मायाभिः) प्रज्ञाविशेषव्यवहारैः। मायेति प्रज्ञानामसु पठितम्। (निघं०३.९) (इन्द्र) परमैश्वर्य्यप्रापक शत्रुनिवारक सभासेनयोः परमाध्यक्ष ! (मायिनम्) माया निन्दिता प्रज्ञा विद्यते यस्य तम्। अत्र निन्दार्थ इनिः। (त्वम्) प्रज्ञासेनाशरीरबलयुक्तः (शुष्णम्) शोषयति धार्मिकान् जनान् तं दुष्टस्वभावं प्राणिनम्। अत्र ‘शुष शोषणे’ इत्यस्मात् तृषिशुषि० (उणा०३.१२) अनेन नः प्रत्ययः। (अव) विनिग्रहार्थे। अवेति विनिग्रहार्थीयः। (निरु०१.३) (अतिरः) शत्रुबलं प्लावयति। अत्र लडर्थे लुङ् विकरणव्यत्ययेन शपः स्थाने शश्च। (विदुः) जानन्ति (ते) तव (तस्य) राज्यादिव्यवहारस्य मध्ये (मेधिराः) ये मेधन्ते शास्त्राणि ज्ञात्वा दुष्टान् हिंसन्ति ते। अत्र ‘मिधृ मेधृ मेधाहिंसनयो’रित्यस्माद्बाहुलकादौणादिक इरन् प्रत्ययः। (तेषाम्) धार्मिकाणां प्राणिनाम् (श्रवांसि) अन्नादीनि वस्तूनि। श्रव इत्यन्ननामसु पठितम्। (निघं०२.७) श्रव इत्यन्ननाम श्रूयत इति सतः। (निरु०१०.३) अनेन विद्यमानादीनामन्नादिपदार्थानां ग्रहणम्। (उत्) उत्कृष्टार्थे (तिर) विस्तारय॥७॥
Connotation: - ईश्वर आज्ञापयति-मेधाविभिर्मनुष्यैः सामदानदण्डभेदयुक्त्या दुष्टशत्रून्निवार्य्य विद्याचक्रवर्त्तिराज्यस्य विस्तारः सम्भावनीयः। यथाऽस्मिन् जगति कपटिनो मनुष्या न वर्द्धेरंस्तथा नित्यं प्रयत्नः कार्य्य इति॥७॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - बुद्धिमान माणसांना ईश्वर आज्ञा देतो की, साम, दाम, दंड व भेदाच्या युक्तीने दुष्ट शत्रूंचा नाश करून विद्या व चक्रवर्ती राज्याची यथायोग्य उन्नती केली पाहिजे. या संसारात कपटी, छळ करणाऱ्या दुष्ट पुरुषांची वाढ होता कामा नये तसा उपाय निरंतर केला पाहिजे. ॥ ७ ॥