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प्र च॑र्ष॒णिभ्य॑: पृतना॒हवे॑षु॒ प्र पृ॑थि॒व्या रि॑रिचाथे दि॒वश्च॑। प्र सिन्धु॑भ्य॒: प्र गि॒रिभ्यो॑ महि॒त्वा प्रेन्द्रा॑ग्नी॒ विश्वा॒ भुव॒नात्य॒न्या ॥

English Transliteration

pra carṣaṇibhyaḥ pṛtanāhaveṣu pra pṛthivyā riricāthe divaś ca | pra sindhubhyaḥ pra giribhyo mahitvā prendrāgnī viśvā bhuvanāty anyā ||

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Pad Path

प्र। च॒र्ष॒णिऽभ्यः॑। पृ॒त॒ना॒ऽहवे॑षु। प्र। पृ॒थि॒व्याः। रि॒रि॒चा॒थे॒ इति॑। दि॒वः। च॒। प्र। सिन्धु॑ऽभ्यः। प्र। गि॒रिऽभ्यः॑। म॒हि॒ऽत्वा। प्र। इ॒न्द्रा॒ग्नी॒ इति॑। विश्वा॑। भुव॑ना। अति॑। अ॒न्या ॥ १.१०९.६

Rigveda » Mandal:1» Sukta:109» Mantra:6 | Ashtak:1» Adhyay:7» Varga:29» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:16» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब पवन और बिजुली कैसे हैं, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - (इन्द्राग्नी) वायु और बिजुली (अन्या) (विश्वा) (भुवना) और समस्त लोकों को (महित्वा) प्रशंसित कराके (पृतनाहवेषु) सेनाओं से प्रवृत्त होते हुए युद्धों में (चर्षणिभ्यः) मनुष्यों से (प्र, पृथिव्याः) अच्छे प्रकार पृथिवी वा (प्र, सिन्धुभ्यः) अच्छे प्रकार समुद्रों वा (प्र, गिरिभ्यः) अच्छे प्रकार पर्वतों वा (प्र, दिवश्च) और अच्छे प्रकार सूर्य्य से (प्र, अति, रिरिचाथे) अत्यन्त बढ़कर प्रतीत होते अर्थात् कलायन्त्रों के सहाय से बढ़कर काम देते हैं ॥ ६ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। पवन और बिजुली के समान बड़ा कोई लोक नहीं होने योग्य है क्योंकि ये दोनों सब लोकों को व्याप्त होकर ठहरे हुए हैं ॥ ६ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ वायुविद्युतौ कीदृशावित्युपदिश्यते ।

Anvay:

इन्द्राग्नी अन्या विश्वा भुवना अन्यान् सर्वाँल्लोकान् महित्वा पृतनाहवेषु चर्षणिभ्यः प्रपृथिव्या प्रसिन्धुभ्यः प्रगिरिभ्यः प्रदिवश्च प्रातिरिरिचाथे प्रातिरिक्तौ भवतः ॥ ६ ॥

Word-Meaning: - (प्र) प्रकृष्टार्थे (चर्षणिभ्यः) मनुष्येभ्यः (पृतनाहवेषु) सेनाभिः प्रवृत्तेषु युद्धेषु (प्र) (पृथिव्याः) भूमेः (रिरिचाथे) अतिरिक्तौ भवतः (दिवः) सूर्यात् (च) अन्येभ्योऽपि लोकेभ्यः (प्र) (सिन्धुभ्यः) समुद्रेभ्यः (प्र) (गिरिभ्यः) शैलेभ्यः (महित्वा) प्रशंसय्य (प्र) (इन्द्राग्नी) वायुविद्युतौ (विश्वा) अखिला (भुवना) भुवनानि लोकान् (अति) (अन्या) अन्यानि ॥ ६ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। नहि वायुविद्युद्भ्यां सदृशो महान् कश्चिदपि लोको भवितुमर्हति कुत एतौ सर्वाँल्लोकानभिव्याप्य स्थितावतः ॥ ६ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. वायू व विद्युतप्रमाणे कोणतेही गोल महान नाहीत. कारण हे दोन्ही सर्व गोलांत व्याप्त आहेत. ॥ ६ ॥