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यु॒वामि॑न्द्राग्नी॒ वसु॑नो विभा॒गे त॒वस्त॑मा शुश्रव वृत्र॒हत्ये॑। तावा॒सद्या॑ ब॒र्हिषि॑ य॒ज्ञे अ॒स्मिन्प्र च॑र्षणी मादयेथां सु॒तस्य॑ ॥

English Transliteration

yuvām indrāgnī vasuno vibhāge tavastamā śuśrava vṛtrahatye | tāv āsadyā barhiṣi yajñe asmin pra carṣaṇī mādayethāṁ sutasya ||

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Pad Path

यु॒वाम्। इ॒न्द्रा॒ग्नी॒ इति॑। वसु॑नः। वि॒ऽभा॒गे। त॒वःऽत॑मा। शु॒श्र॒व॒। वृ॒त्र॒ऽहत्ये॑। तौ। आ॒ऽसद्य॑। ब॒र्हिषि॑। य॒ज्ञे। अ॒स्मिन्। प्र। च॒र्ष॒णी॒ इति॑। मा॒द॒ये॒था॒म्। सु॒तस्य॑ ॥ १.१०९.५

Rigveda » Mandal:1» Sukta:109» Mantra:5 | Ashtak:1» Adhyay:7» Varga:28» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:16» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वे दोनों कैसे हैं, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - मैं (वसुनः) धन के (विभागे) सेवन व्यवहार में (वृत्रहत्ये) वा जिसमें शत्रुओं और मेघों का हनन हो उस संग्राम में (युवाम्) ये दोनों (इन्द्राग्नी) बिजुली और साधारण अग्नि (तवस्तमा) अतीव बलवान् और बल के देनेहारे हैं यह (शुश्रव) सुनता हूँ, इससे (तौ) वे दोनों (प्रचर्षणी) अच्छे सुख को प्राप्त करानेहारे (अस्मिन्) इस (बर्हिषि) समीप में बढ़नेहारे (यज्ञे) शिल्पव्यवहार के निमित्त (सुतस्य) उत्पन्न किये विमान आदि रथ को (आसद्य) प्राप्त होकर (मादयेथाम्) आनन्द देते हैं ॥ ५ ॥
Connotation: - मनुष्य जिनसे धनों का विभाग करते हैं वा शत्रुओं को जीतके समस्त पृथिवी पर राज्यकर सकते हैं, उनको कार्य की सिद्धि के लिये कैसे न यथायोग्य कामों में युक्त करें ॥ ५ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तौ कीदृशावित्युपदिश्यते ।

Anvay:

अहं वसुनो विभागे वृत्रहत्ये वा युवामिन्द्राग्नी तवस्तमा स्त इति शुश्रव शृणोमि। अतस्तौ प्रचर्षणी अस्मिन् बर्हिषि यज्ञे सुतस्य निष्पादितं यानमासद्य मादयेथाम् ॥ ५ ॥

Word-Meaning: - (युवाम्) एतौ द्वौ (इन्द्राग्नी) पूर्वोक्तौ (वसुनः) धनस्य (विभागे) सेवनव्यवहारे (तवस्तमा) अतिशयेन बलयुक्तौ बलप्रदौ वा (शुश्रव) शृणोमि (वृत्रहत्ये) वृत्रस्य शत्रुसमूहस्य मेघस्य वा हत्या हननं येन तस्मिन् संग्रामे (तौ) (आसद्य) प्राप्य वा। अत्रान्येषामपि दृश्यत इति दीर्घः। (बर्हिषि) उपवर्धयितव्ये (यज्ञे) सङ्गमनीये शिल्पव्यवहारे (अस्मिन्) (प्र, चर्षणी) सम्यक् सुखप्रापकौ। चर्षणिरिति पदना०। निघं० ४। २। (मादयेथाम्) मादयेते हर्षयतः (सुतस्य) निष्पादितस्य कर्मणि षष्ठी ॥ ५ ॥
Connotation: - मनुष्या याभ्यां धनानि विभजन्ति वा शत्रून् विजित्य सार्वभौमं राज्यं कर्त्तुं शक्नुवन्ति, तौ कार्यसिद्धये कथं न संप्रयुञ्जीरन् ॥ ५ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - माणसे ज्यांच्याद्वारे धनाचा व्यवहार करतात किंवा शत्रूंना जिंकून संपूर्ण पृथ्वीवर राज्य करू शकतात. त्या विद्युत व अग्नीला कार्यसिद्धीसाठी यथायोग्य कामात का प्रयुक्त करू नये? ॥ ५ ॥