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यु॒वाभ्यां॑ दे॒वी धि॒षणा॒ मदा॒येन्द्रा॑ग्नी॒ सोम॑मुश॒ती सु॑नोति। ताव॑श्विना भद्रहस्ता सुपाणी॒ आ धा॑वतं॒ मधु॑ना पृ॒ङ्क्तम॒प्सु ॥

English Transliteration

yuvābhyāṁ devī dhiṣaṇā madāyendrāgnī somam uśatī sunoti | tāv aśvinā bhadrahastā supāṇī ā dhāvatam madhunā pṛṅktam apsu ||

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Pad Path

यु॒वाभ्या॑म्। दे॒वी। धि॒षणा॑। मदा॑य। इन्द्रा॑ग्नी॒ इति॑। सोम॑म्। उ॒श॒ती। सु॒नो॒ति॒। तौ। अ॒श्वि॒ना॒। भ॒द्र॒ऽह॒स्ता॒। सु॒पा॒णी॒ इति॑ सुऽपाणी। आ। धा॒व॒त॒म्। मधु॑ना। पृ॒ङ्क्तम्। अ॒प्ऽसु ॥ १.१०९.४

Rigveda » Mandal:1» Sukta:109» Mantra:4 | Ashtak:1» Adhyay:7» Varga:28» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:16» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वे कैसे हैं, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - जो (सोमम्) ऐश्वर्य्य की (उशती) कान्ति करानेवाली (देवी) अच्छी-अच्छी शिक्षा और शास्त्रविद्या आदि से प्रकाशमान (धिषणा) बुद्धि (मदाय) आनन्द के लिये (युवाभ्याम्) जिनसे कामों को (सुनोति) सिद्ध करती है उस बुद्धि से जो (इन्द्राग्नी) बिजुली और भौतिक अग्नि (अप्सु) कलाघरों के जलके स्थानों में (मधुना) जल से (पृङ्क्तम्) संपर्क अर्थात् संबन्ध करते हैं वा (भद्रहस्ता) जिनके उत्तम सुख के करनेवाले हाथों के तुल्य गुण (सुपाणी) और अच्छे-अच्छे व्यवहार वा (अश्विना) जो सब में व्याप्त होनेवाले हैं (तौ) वे बिजुली और भौतिक अग्नि रथों में अच्छी प्रकार लगाये हुए उनको (आ, धावतम्) चलाते हैं ॥ ४ ॥
Connotation: - मनुष्य जब-तक अच्छी शिक्षा, उत्तम विद्या और क्रियाकौशलयुक्त बुद्धियों को न सिद्ध करते हैं, तब-तक बिजुली आदि पदार्थों से उपकार को नहीं ले सकते। इससे इस काम को अच्छे यत्न से सिद्ध करना चाहिये ॥ ४ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तौ कीदृशावित्युपदिश्यते ।

Anvay:

या सोममुशती देवी धिषणा मदाय युवाभ्यां कार्य्याणि सुनोति तया याविन्द्राग्नी अप्सु मधुना पृङ्क्तं भद्रहस्ता सुपाणी अश्विना स्तस्ताविन्द्राग्नी यानेषु संप्रयुक्तौ सन्तावाधावतं समन्तात् यानानि धावयतम् ॥ ४ ॥

Word-Meaning: - (युवाभ्याम्) (देवी) दिव्यशिक्षाशास्त्रविद्याभिर्देदीप्यमाना (धिषणा) प्रज्ञा (मदाय) हर्षाय (इन्द्राग्नी) पूर्वोक्तौ (सोमम्) ऐश्वर्यम् (उशती) कामयमाना (सुनोति) निष्पादयति (तौ) (अश्विना) व्याप्तिशीलौ (भद्रहस्ता) भद्रकरणहस्ताविव गुणा ययोस्तौ (सुपाणी) शोभनाः पाणयो व्यवहारा ययोस्तौ (आ) समन्तात् (धावतम्) धावयतः (मधुना) जलेन (पृङ्क्तम्) संपृङ्क्तः (अप्सु) कलास्थेषु जलाशयेषु वर्त्तमानौ ॥ ४ ॥
Connotation: - मनुष्या यावत् सुशिक्षासुविद्याक्रियाकौशलयुक्ता धियो न संपादयन्ति तावद्विद्युदादिभ्यः पदार्थेभ्य उपकारं ग्रहीतुं न शक्नुवन्ति तस्मादेतत् प्रयत्नेन साधनीयम् ॥ ४ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - माणसे जोपर्यंत चांगले शिक्षण, उत्तम विद्या व क्रिया कौशल्ययुक्त बुद्धी सिद्ध करीत नाहीत. तोपर्यंत विद्युत इत्यादी पदार्थांपासून उपकार घेऊ शकत नाहीत. त्यासाठी हे कार्य प्रयत्नपूर्वक सिद्ध केले पाहिजे. ॥ ४ ॥