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वि ह्यख्यं॒ मन॑सा॒ वस्य॑ इ॒च्छन्निन्द्रा॑ग्नी ज्ञा॒स उ॒त वा॑ सजा॒तान्। नान्या यु॒वत्प्रम॑तिरस्ति॒ मह्यं॒ स वां॒ धियं॑ वाज॒यन्ती॑मतक्षम् ॥

English Transliteration

vi hy akhyam manasā vasya icchann indrāgnī jñāsa uta vā sajātān | nānyā yuvat pramatir asti mahyaṁ sa vāṁ dhiyaṁ vājayantīm atakṣam ||

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Pad Path

वि। हि। अख्य॑म्। मन॑सा। वस्यः॑। इ॒च्छन्। इन्द्रा॑ग्नी॒ इति॑। ज्ञा॒सः। उ॒त। वा॒। स॒ऽजा॒तान्। न। अ॒न्या। यु॒वत्। प्रऽम॑तिः। अ॒स्ति॒। मह्य॑म्। सः। वा॒म्। धिय॑म्। वा॒ज॒ऽयन्ती॑म्। अ॒त॒क्ष॒म् ॥ १.१०९.१

Rigveda » Mandal:1» Sukta:109» Mantra:1 | Ashtak:1» Adhyay:7» Varga:28» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:16» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब एकसौ नववें सूक्त का प्रारम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र से फिर वे भौतिक अग्नि और बिजुली कैसे हैं, यह उपदेश किया है ।

Word-Meaning: - जैसे (इन्द्राग्नी) बिजुली और जो दृष्टिगोचर अग्नि है उनकी (इच्छन्) चाहता हुआ (वस्यः) जिन्होंने चौबीस वर्ष पर्य्यन्त ब्रह्मचर्य्य किया है उनमें प्रशंसनीय मैं तथा (ज्ञासः) जो ज्ञाताजन हैं उनको वा जानने योग्य पदार्थों को (सजातान्) वा एक सङ्ग हुए पदार्थों को (उत) और (वा) विद्यार्थी वा समझानेवालों को (मनसा) विशेष ज्ञान से जानने की इच्छा करता हुआ (युवत्) सब वस्तुओं को यथायोग्य कार्य्य में लगवानेहारा मैं इनको (हि) निश्चय से (वि, अख्यम्) औरों के प्रति उत्तमता के साथ कहूँ वैसे तुम लोग भी कहो, जो मेरी (प्रमतिः) प्रबल मति (अस्ति) है वह तुम लोगों को भी हो, (न, अन्या) और न हो। जैसे मैं (वाम्) तुम दोनों पढ़ाने-पढ़नेवालों से (वाजयन्तीम्) समस्त विद्याओं को जतानेवाली (धियम्) उत्तम बुद्धि को (अतक्षम्) सूक्ष्म करूँ अर्थात् बहुत कठिन विषयों को सुगमता से जानूँ वैसे (सः) वह पढ़ाने और पढ़नेवाला इसको (मह्यम्) मेरे लिये सूक्ष्म करे ॥ १ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में दो लुप्तोपमालङ्कार हैं। मनुष्यों की योग्यता यह है कि अच्छी प्रीति और पुरुषार्थ से श्रेष्ठ विद्या आदि को बोध कराते हुए अति उत्तम बुद्धि उत्पन्न कराकर व्यवहार और परमार्थ की सिद्धि करानेवाले कामों को अवश्य सिद्ध करें ॥ १ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तौ विद्युत्प्रसिद्धाग्नी कीदृशावित्युपदिश्यते ।

Anvay:

यथेन्द्राग्नी इच्छन् वस्योऽहं ज्ञासः सजातानुत वा मनसा ज्ञातुमिच्छन् युवदहमेतान् हि खलु व्यख्यं तथा यूयमपि विख्यात या मम प्रमतिरस्ति सा युष्मभ्यमप्यस्तु नान्या यथाहं वामध्यापकाध्येतृभ्यां वाजयन्तीं धियमतक्षं तथा सोऽध्यापकोऽध्येता चैनां मह्यं तक्षतु ॥ १ ॥

Word-Meaning: - (वि) विविधार्थे (हि) खलु (अख्यम्) अन्यान्प्रति कथयेयम् (मनसा) विज्ञानेन (वस्यः) वसुषु साधु। छान्दसो वर्णलोपो वेत्युकारलोपः। (इच्छन्) (इन्द्राग्नी) विद्युद्भौतिकावग्नी (ज्ञासः) जानन्ति ये तान् विदुषः सृष्टिस्थान् ज्ञातव्यान्पदार्थान्वा (उत) अपि (वा) विद्यार्थिनां ज्ञापकानां समुच्चये वा (सजातान्) सहोत्पन्नान् (न) नहि (अन्या) भिन्ना (युवत्) मिश्रयित्रमिश्रकौ वा (प्रमतिः) प्रकृष्टा चासौ मतिश्च प्रमतिः (अस्ति) (मह्यम्) (सः) (वाम्) युवाभ्याम् (धियम्) उत्तमां प्रज्ञाम् (वाजयन्तीम्) सबलानां विद्यानां प्रज्ञापिकाम् (अतक्षम्) तनूकुर्य्याम् ॥ १ ॥
Connotation: - अत्र लुप्तोपमालङ्कारौ। मनुष्याणां योग्यतास्ति सत्प्रीतिपुरुषार्थाभ्यां सद्विद्यादि बोधयन्तोऽत्युत्तमां बुद्धिं जनयित्वा व्यवहारपरमार्थसिद्धिकराणि कार्याण्यवश्यं साध्नुवन्तु ॥ १ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात इंद्र व अग्नी शब्दाच्या अर्थाचे वर्णन आहे. यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती आहे, हे जाणावे.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात दोन लुप्तोपमालंकार आहेत. माणसांनी उत्तम प्रेम व पुरुषार्थाने श्रेष्ठ विद्या इत्यादीचा बोध करवून अत्यंत उत्तम बुद्धी उत्पन्न करवून व्यवहार व परमार्थ सिद्ध करण्यासाठी कार्य करावे. ॥ १ ॥