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य इ॑न्द्राग्नी चि॒त्रत॑मो॒ रथो॑ वाम॒भि विश्वा॑नि॒ भुव॑नानि॒ चष्टे॑। तेना या॑तं स॒रथं॑ तस्थि॒वांसाथा॒ सोम॑स्य पिबतं सु॒तस्य॑ ॥

English Transliteration

ya indrāgnī citratamo ratho vām abhi viśvāni bhuvanāni caṣṭe | tenā yātaṁ sarathaṁ tasthivāṁsāthā somasya pibataṁ sutasya ||

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Pad Path

यः। इ॒न्द्रा॒ग्नी॒ इति॑। चि॒त्रऽत॑मः। रथः॑। वा॒म्। अ॒भि। विश्वा॑नि। भुव॑नानि। चष्टे॑। तेन॑। आ। या॒त॒म्। स॒ऽरथ॑म्। त॒स्थि॒वांसा॑। अथ॑। सोम॑स्य। पि॒ब॒त॒म्। सु॒तस्य॑ ॥ १.१०८.१

Rigveda » Mandal:1» Sukta:108» Mantra:1 | Ashtak:1» Adhyay:7» Varga:26» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:16» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब एकसौ आठवें सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र से दो-दो इकट्ठे पदार्थों वा गुणों का उपदेश किया है ।

Word-Meaning: - (यः) जो (चित्रतमः) एकीएका अद्भुत गुण और क्रिया को लिए हुए (रथः) विमान आदि यानसमूह (वाम्) इन (तस्थिवांसा) ठहरे हुए (इन्द्राग्नी) पवन और अग्नि को प्राप्त होकर (विश्वानि) सब (भुवनानि) भूगोल के स्थानों को (अभि, चष्टे) सब प्रकार से दिखाता है (अथ) इसके अनन्तर जिससे ये दोनों अर्थात् पवन और अग्नि (सरथम्) रथ आदि सामग्री सहित सेना वा उत्तम सामग्री को (आ, यातम्) प्राप्त हुए अच्छी प्रकार अभीष्ट स्थान को पहुँचाते हैं तथा (सुतस्य) ईश्वर के उत्पन्न किये हुए (सोमस्य) सोम आदि के रस को (पिबतम्) पीते हैं (तेन) उससे समस्त शिल्पी मनुष्यों को सब जगह जाना-आना चाहिये ॥ १ ॥
Connotation: - मनुष्यों को चाहिये कि कलाओं में अच्छी प्रकार जोड़के चलाये, हुए वायु और अग्नि आदि पदार्थों से युक्त विमान आदि रथों से आकाश, समुद्र और भूमि मार्गों में एक देश से दूसरे देशों को जा-आकर सर्वदा अपने अभिप्राय की सिद्धि से आनन्दरस भोगें ॥ १ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ युग्मयोर्गुणा उपदिश्यन्ते ।

Anvay:

यश्चित्रतमो रथो वामेतौ तस्थिवांसेन्द्राग्नी प्राप्य विश्वानि भुवनान्यभिचष्टेऽभितो दर्शयति। अथ येनैतौ सरथमायातं समन्ताद्गमयतः सुतस्य सोमस्य रसं पिबतं पिबतस्तेन सर्वैः शिल्पिभिः सर्वत्र गमनागमने कार्य्ये ॥ १ ॥

Word-Meaning: - (यः) (इन्द्राग्नी) वायुपावकौ (चित्रतमः) अतिशयेनाश्चर्य्यस्वरूपगुणक्रियायुक्तः (रथः) विमानादियानसमूहः (वाम्) एतौ (अभि) अभितः (विश्वानि) सर्वाणि (भुवनानि) भूगोलस्थानानि (चष्टे) दर्शयति। अत्रान्तर्गतो ण्यर्थः। (तेन) आ (यातम्) गच्छतो गमयतो वा (सरथम्) रथैः सह वर्त्तमानं सैन्यमुत्तमां सामग्रीं वा (तस्थिवांसा) स्थितिमन्तौ (अथ) (सोमस्य) रसवतः सोमवल्ल्यादीनां समूहस्य रसम् (पिबतम्) पिबतः (सुतस्य) ईश्वरेणोत्पादितस्य ॥ १ ॥
Connotation: - मनुष्यैः कलासु सम्प्रयोज्य चालितैर्वाय्वग्न्यादिभिर्युक्तैर्विमानादिभिर्यानैराकाशसमुद्रभूमिमार्गेषु देशान्तरान् गत्वाऽऽगत्य सर्वदा स्वाभिप्रायसिद्ध्यानन्दरसो भोक्तव्यः ॥ १ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात वायू व विद्युत इत्यादी गुणांच्या वर्णनाने त्याच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे ॥

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - माणसांनी कलायंत्रांना जोडून वायू अग्नीयुक्त पदार्थानी विमान इत्यादी यानांनी आकाश, समुद्र व भूमी मार्गानी देशदेशांतरी प्रवास करावा व आपले उद्दिष्ट सफल करावे आणि आनंद भोगावा. ॥ १ ॥