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य॒ज्ञो दे॒वानां॒ प्रत्ये॑ति सु॒म्नमादि॑त्यासो॒ भव॑ता मृळ॒यन्त॑:। आ वो॒ऽर्वाची॑ सुम॒तिर्व॑वृत्यादं॒होश्चि॒द्या व॑रिवो॒वित्त॒रास॑त् ॥

English Transliteration

yajño devānām praty eti sumnam ādityāso bhavatā mṛḻayantaḥ | ā vo rvācī sumatir vavṛtyād aṁhoś cid yā varivovittarāsat ||

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Pad Path

य॒ज्ञः। दे॒वाना॑म्। प्रति॑। ए॒ति॒। सु॒म्नम्। आदि॑त्यासः॑। भव॑त। मृ॒ळ॒यन्तः॑। आ। वः॒। अ॒र्वाची॑। सु॒ऽम॒तिः। व॒वृ॒त्या॒त्। अं॒होः। चि॒त्। या। व॒रि॒वो॒वित्ऽत॑रा। अस॑त् ॥ १.१०७.१

Rigveda » Mandal:1» Sukta:107» Mantra:1 | Ashtak:1» Adhyay:7» Varga:25» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:16» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब तीन ऋचावाले एकसौ सातवें सूक्त का प्रारम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र से समस्त विद्वान् जन कैसे हों, यह उपदेश किया है ।

Word-Meaning: - (मृडयन्तः) हे आनन्दित करते हुए (आदित्यासः) सूर्य्य के तुल्य विद्यायोग से प्रकाश को प्राप्त विद्वानो ! तुम जो (देवानाम्) विद्वानों की (यज्ञः) सङ्गति से सिद्ध हुआ शिल्प काम (सुम्नम्) सुख की (प्रति, एति) प्रतीति कराता है, उसको प्रकट करनेहारे (भवत) होओ, (या) जो (वः) तुम लोगों को (अंहोः) विशेष ज्ञान जैसे हो वैसे (अर्वाची) इस समय की (सुमतिः) उत्तम बुद्धि (ववृत्यात्) वर्त्ति रही है वह (चित्) भी हम लोगों के लिये (वरिवोवित्तरा) ऐसी हो कि जिससे उत्तम जनों की अच्छी प्रकार शुश्रूषा (आ, असत्) सब ओर से होवे ॥ १ ॥
Connotation: - इस संसार में विद्वानों को चाहिये कि जो उन्होंने अपने पुरुषार्थ से शिल्पक्रिया प्रत्यक्ष कर रक्खी हैं, उनको सब मनुष्यों के लिये प्रकाशित करें कि जिससे बहुत मनुष्य शिल्पक्रियाओं को करके सुखी हों ॥ १ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

विश्वे देवाः कीदृशा इत्युपदिश्यते ।

Anvay:

हे मृडयन्त आदित्यासो विद्वांसो यूयं यो देवानां यज्ञः सुम्नं प्रत्येति तस्य प्रकाशका भवत। या वोहोरर्वाची सुमतिर्ववृत्यात् सा चिदस्मभ्यं वरिवोवित्तराऽऽसद् भवतु ॥ १ ॥

Word-Meaning: - (यज्ञः) सङ्गत्या सिद्धः शिल्पाख्यः (देवानाम्) (प्रति) (एति) प्राप्नोति प्रापयति। अत्रान्तर्गतो ण्यर्थः। (सुम्नम्) सुखम् (आदित्यासः) सूर्य्यवद्विद्यायोगेन प्रकाशिता विद्वांसः (भवत) अत्रान्येषामपि दृश्यत इति दीर्घः। (मृडयन्तः) आनन्दयन्तः (आ) (वः) युष्माकम् (अर्वाची) इदानीन्तनी (सुमतिः) शोभना प्रज्ञा (ववृत्यात्) वर्त्तेत। अत्र व्यत्ययेन परस्मैपदम् शपः स्थाने श्लुश्च। (अंहोः) विज्ञानवत्। अत्राहि धातोरौणादिक उः प्रत्ययः। (चित्) अपि (या) (वरिवोवित्तरा) वरिवः सेवनं विद्वद्वन्दनं वा यया सुमत्या सातिशयिता (असत्) भवतु ॥ १ ॥
Connotation: - अस्मिञ्जगति विद्वद्भिः स्वपुरुषार्थेन याः शिल्पक्रियाः प्रत्यक्षीकृतास्ताः सर्वेभ्यो मनुष्येभ्यः प्रकाशिताः कार्या यतो बहवो मनुष्याः शिल्पक्रियाः कृत्वा सुखिनः स्युः ॥ १ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात संपूर्ण विद्वानांच्या गुणांचे वर्णन आहे. त्यामुळे या सूक्ताची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे ॥

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या जगात विद्वानांनी आपल्या पुरुषार्थाने जी शिल्पविद्या (कारागिरी) प्रत्यक्ष केलेली आहे. त्यांनी ती सर्व माणसांसाठी प्रकट करावी ज्यामुळे पुष्कळ माणसे शिल्पक्रियेमुळे सुखी व्हावीत. ॥ १ ॥