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इन्द्रं॒ कुत्सो॑ वृत्र॒हणं॒ शची॒पतिं॑ का॒टे निवा॑ळ्ह॒ ऋषि॑रह्वदू॒तये॑। रथं॒ न दु॒र्गाद्व॑सवः सुदानवो॒ विश्व॑स्मान्नो॒ अंह॑सो॒ निष्पि॑पर्तन ॥

English Transliteration

indraṁ kutso vṛtrahaṇaṁ śacīpatiṁ kāṭe nibāḻha ṛṣir ahvad ūtaye | rathaṁ na durgād vasavaḥ sudānavo viśvasmān no aṁhaso niṣ pipartana ||

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Pad Path

इन्द्र॑म्। कुत्सः॑। वृ॒त्र॒ऽहन॑म्। श॒ची॒३॒॑ऽपति॑म्। का॒टे। निऽवा॑ळ्हः। ऋषिः॑। अ॒ह्व॒त्। ऊ॒तये॑। रथ॑म्। न। दुः॒ऽगात्। व॒स॒वः॒। सु॒ऽदा॒नवः॒। विश्व॑स्मात्। नः॒। अंह॑सः। निः। पि॒प॒र्त॒न॒ ॥ १.१०६.६

Rigveda » Mandal:1» Sukta:106» Mantra:6 | Ashtak:1» Adhyay:7» Varga:24» Mantra:6 | Mandal:1» Anuvak:16» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर पढ़ाने और पढ़नेवाले क्या करें, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - (कुत्सः) विद्यारूपी वज्र लिये वा पदार्थों को छिन्न-भिन्न करने (निवाढः) निरन्तर सुखों को प्राप्त करानेवाला (ऋषिः) गुरु और विद्यार्थी (काटे) जिसमें समस्त विद्याओं की वर्षा होती है उस अध्यापन व्यवहार में (ऊतये) रक्षा आदि के लिए जिस (वृत्रहणम्) शत्रुओं को विनाश करने वा (शचीपतिम्) वेद वाणी के पालनेहारे (इन्द्रम्) परमैश्वर्य्यवान् शाला आदि के अधीश को (अह्वत्) बुलावे, हम लोग भी उसी को बुलावें। शेष मन्त्रार्थ प्रथम मन्त्र के तुल्य जानना चाहिये ॥ ६ ॥
Connotation: - विद्यार्थी को कपटी पढ़ानेवाले के समीप ठहरना नहीं चाहिये किन्तु आप्त विद्वानों के समीप ठहर और विद्वान् होकर ऋषिजनों के स्वभाव से युक्त होना चाहिये और अपने आत्मा की रक्षा के लिये अधर्म से डरकर धर्म में सदा रहना चाहिये ॥ ६ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनरध्यापकोऽध्येता च किं कुर्य्यादित्युपदिश्यते ।

Anvay:

कुत्सो निवाढ ऋषिः काट ऊतये यं वृत्रहणं शचीपतिमिन्द्रमह्वत्, तं वयमप्याह्वयेम। अन्यत्पूर्ववत् ॥ ६ ॥

Word-Meaning: - (इन्द्रम्) परमैश्वर्यवन्तं शालाद्यध्यक्षम् (कुत्सः) विद्यावज्रयुक्तश्छेत्ता पदार्थानां भेत्ता वा। कुत्स इति वज्रना०। निघं० २। २०। कुत्स इत्येतत्कृन्ततेर्ऋषिः कुत्सो भवति कर्त्ता स्तोमानामित्यौपमन्यवोऽत्राप्यस्य वधकर्मैव भवति। निरु० ३। ११। (वृत्रहणम्) शत्रूणां हन्तारम्। अत्र हन्तेरत्पूर्वस्य। अ० ८। ४। २२। इति णत्वम्। (शचीपतिम्) वेदवाचः पालकम् (काटे) कटन्ति वर्षन्ति सकला विद्या यस्मिन्नध्यापने व्यवहारे तस्मिन् (निवाढः) नित्यं सुखानां प्रापयिता (ऋषिः) अध्यापकोऽध्येता वा (अह्वत्) अह्वयेत् (ऊतये) रक्षणाद्याय (रथं, न, दुर्गात्०) इति पूर्ववत् ॥ ६ ॥
Connotation: - नहि विद्यार्थिना कपटिनोऽध्यापकस्य समीपे स्थातव्यं किन्तु विदुषां समीपे स्थित्वा विद्वान् भूत्वर्षिस्वभावेन भवितव्यम्। स्वात्मरक्षणायाधर्माद्भीत्वा धर्मे सदा स्थातव्यम् ॥ ६ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - विद्यार्थ्यांनी कपट अध्यापकाजवळ राहता कामा नये, तर आप्त विद्वानाजवळ राहून व विद्वान बनून ऋषीच्या स्वभावाप्रमाणे बनले पाहिजे. आपल्या आत्म्याच्या रक्षणासाठी अधर्माला भिऊन सदैव धर्मात राहिले पाहिजे. ॥ ६ ॥