Go To Mantra

अ॒मी ये स॒प्त र॒श्मय॒स्तत्रा॑ मे॒ नाभि॒रात॑ता। त्रि॒तस्तद्वे॑दा॒प्त्यः स जा॑मि॒त्वाय॑ रेभति वि॒त्तं मे॑ अ॒स्य रो॑दसी ॥

English Transliteration

amī ye sapta raśmayas tatrā me nābhir ātatā | tritas tad vedāptyaḥ sa jāmitvāya rebhati vittam me asya rodasī ||

Mantra Audio
Pad Path

अ॒मी इति॑। ये। स॒प्त। र॒श्मयः॑। तत्र॑। मे॒। नाभिः॑। आऽत॑ता। त्रि॒तः। तत्। वे॒द॒। आ॒प्त्यः। सः। जा॒मि॒ऽत्वाय॑। रे॒भ॒ति॒। वि॒त्तम्। मे॒। अ॒स्य। रो॒द॒सी॒ इति॑ ॥ १.१०५.९

Rigveda » Mandal:1» Sukta:105» Mantra:9 | Ashtak:1» Adhyay:7» Varga:21» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:15» Mantra:9


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब न्यायाधीशों के साथ प्रजाजन कैसे वर्त्तें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - जहाँ (अमी) (ये) ये (सप्त) सात (रश्मयः) किरणों के समान नीतिप्रकाश हैं (तत्र) वहाँ (मे) मेरी (नाभिः) सब नसों को बाँधनेवाली तोंद (आतता) फैली है, जिसमें निरन्तर मेरी स्थिति है (तत्) उसको जो (आप्त्यः) सज्जनों में उत्तम जन (त्रितः) तीनों अर्थात् भूत, भविष्यत् और वर्त्तमान काल से (वेद) जाने अर्थात् रात-दिन विचारे (सः) वह पुरुष (जामित्वाय) राज्य भोजने के लिये कन्या के तुल्य (रेभति) प्रजाजनों की रक्षा तथा प्रशंसा और चाहना करता है। और अर्थ प्रथम मन्त्रार्थ के समान जानो ॥ ९ ॥
Connotation: - जैसे सूर्य्य के साथ किरणों की शोभा और सङ्ग है, वैसे राजपुरुषों के साथ प्रजाजनों की शोभा और सङ्ग हो। तथा जो मनुष्य कर्म, उपासना और ज्ञान को यथावत् जानता है, वह प्रजा के पालने में पितृवत् होकर समस्त प्रजाजनों का मनोरञ्जन कर सकता है, और नहीं ॥ ९ ॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ न्यायाधीशादिभिः सह प्रजाः कथं वर्त्तेरन्नित्युपदिश्यते ।

Anvay:

यत्रामी ये सप्त रश्मय इव सप्तधा नीतिप्रकाशाः सन्ति तत्र मे नाभिरातता यत्र नैरन्तर्येण स्थितिर्मम तद् य आप्त्यो विद्वान् त्रितो वेद स जामित्वाय राजभोगाय प्रजा रेभति। अन्यत्सर्वं पूर्ववत् ॥ ९ ॥

Word-Meaning: - (अमी) (ये) (सप्त) सप्ततत्वाङ्गमिश्रितस्य भावाः सप्तधा (रश्मयः) (तत्र) तस्मिन्। ऋचि तुनुघेति दीर्घः। (मे) मम (नाभिः) शरीरमध्यस्था सर्वप्राणबन्धनाङ्गम् (आतता) समन्ताद्विस्तृता (त्रितः) त्रिभ्यो भूतभविष्यद्वर्त्तमानकालेभ्यः (तत्) तान् (वेद) जानाति (आप्त्यः) य आप्तेषु भवः सः (सः) (जामित्वाय) कन्यावत् पालनाय प्रजाभावाय (रेभति) अर्चति। अन्यत् पूर्ववत् ॥ ९ ॥
Connotation: - यथा सूर्येण सह रश्मीनां शोभासङ्गौ स्तस्तथा राजपुरुषैः प्रजानां शोभासङ्गौ भवेताम्। यो मनुष्यः कर्मोपासनाज्ञानानि यथावत् विजानाति सः प्रजापालने पितृवद्भूत्वा सर्वाः प्रजा रञ्जयितुं शक्नोति नेतरः ॥ ९ ॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - जशी सूर्याच्या संगतीत किरणे शोभिवंत दिसतात. तसे राजपुरुषाच्या संगतीत प्रजाजन शोभून दिसावेत. जो माणूस कर्म, उपासना व ज्ञान यांना यथायोग्य जाणतो. तो प्रजेचे पालन पित्याप्रमाणे करून संपूर्ण प्रजाजनांचे रंजन करू शकतो, इतर नव्हे ॥ ९ ॥