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अ॒सौ यः पन्था॑ आदि॒त्यो दि॒वि प्र॒वाच्यं॑ कृ॒तः। न स दे॑वा अति॒क्रमे॒ तं म॑र्तासो॒ न प॑श्यथ वि॒त्तं मे॑ अ॒स्य रो॑दसी ॥

English Transliteration

asau yaḥ panthā ādityo divi pravācyaṁ kṛtaḥ | na sa devā atikrame tam martāso na paśyatha vittam me asya rodasī ||

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Pad Path

अ॒सौ। यः। पन्थाः॑। आ॒दि॒त्यः। दि॒वि। प्र॒ऽवाच्य॑म्। कृ॒तः। न। सः। दे॒वाः॒। अ॒ति॒ऽक्रमे॑। तम्। म॒र्ता॒सः॒। न। प॒श्य॒थ॒। वि॒त्तम्। मे॒। अ॒स्य। रो॒द॒सी॒ इति॑ ॥ १.१०५.१६

Rigveda » Mandal:1» Sukta:105» Mantra:16 | Ashtak:1» Adhyay:7» Varga:23» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:15» Mantra:16


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब यह मार्ग कैसा है, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (देवाः) विद्वान् लोगो ! (असौ) यह (आदित्यः) अविनाशी सूर्य्य के तुल्य प्रकाश करनेवाला (यः) जो (पन्थाः) वेद से प्रतिपादित मार्ग (दिवि) समस्त विद्या के प्रकाश में (प्रवाच्यम्) अच्छे प्रकार से कहने योग्य जैसे हो वैसे (कृतः) ईश्वर ने स्थापित किया (सः) वह तुम लोगों को (अतिक्रमे) उल्लङ्घन करने योग्य (न) नहीं है। हे (मर्त्तासः) केवल मरने-जीनेवाले विचाररहित मनुष्यो ! (तम्) उस पूर्वोक्त मार्ग को तुम (न) नहीं (पश्यथ) देखते हो। शेष मन्त्रार्थ पूर्व के तुल्य जानना चाहिये ॥ १६ ॥
Connotation: - मनुष्यों को चाहिये कि जो वेदोक्त मार्ग है, वही सत्य है, ऐसा जान और समस्त सत्यविद्याओं को प्राप्त होकर सदा आनन्दित हों, सो यह वेदोक्त मार्ग विद्वानों को कभी खण्डन करने योग्य नहीं, और यह मार्ग विद्या के विना विशेष जाना भी नहीं जाता ॥ १६ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथायं मार्गः कीदृश इत्युपदिश्यते ।

Anvay:

हे देवा असावादित्यो यः पन्था दिवि प्रवाच्यं कृतः स युष्माभिर्नातिक्रमेऽतिक्रमितुं न उल्लङ्घितुं न योग्यः। हे मर्त्तासस्तं पूर्वोक्तं यूयं न पश्यथ। अन्यत् पूर्ववत् ॥ १६ ॥

Word-Meaning: - (असौ) (यः) (पन्थाः) वेदप्रतिपादितो मार्गः (आदित्यः) विनाशरहितः सूर्य्यवत्प्रकाशकः (दिवि) सर्वविद्याप्रकाशे (प्रवाच्यम्) प्रकृष्टतया वक्तुं योग्यं यथास्यात्तथा (कृतः) नितरां स्थापितः (न) निषेधे (सः) (देवाः) विद्वांसः (अतिक्रमे) अतिक्रमितुमुल्लङ्घितुम् (तम्) मार्गम् (मर्त्तासः) मरणधर्माणः (न) निषेधे (पश्यथ) (वित्तं, मे, अस्य) इति पूर्ववत् ॥ १६ ॥
Connotation: - मनुष्यैर्यो वेदोक्तो मार्गः स एव सत्य इति विज्ञाय सर्वाः सत्यविद्याः प्राप्य सदानन्दितव्यम्। सोऽयं विद्वद्भिर्नैव कदाचित् खण्डनीयो विद्यया विनाऽयं विज्ञातोऽपि न भवति ॥ १६ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - वेदोक्त मार्गच सत्य आहे, हे माणसांनी जाणून व संपूर्ण सत्य विद्यांना प्राप्त करून सदैव आनंदित राहावे. त्यासाठी या वेदोक्त मार्गाचे विद्वानांनी खंडन करू नये. हा मार्ग विद्येशिवाय विशेष जाणता येत नाही. ॥ १६ ॥