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च॒न्द्रमा॑ अ॒प्स्व१॒॑न्तरा सु॑प॒र्णो धा॑वते दि॒वि। न वो॑ हिरण्यनेमयः प॒दं वि॑न्दन्ति विद्युतो वि॒त्तं मे॑ अ॒स्य रो॑दसी ॥

English Transliteration

candramā apsv antar ā suparṇo dhāvate divi | na vo hiraṇyanemayaḥ padaṁ vindanti vidyuto vittam me asya rodasī ||

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Pad Path

च॒न्द्रमाः॑। अ॒प्ऽसु। अ॒न्तः। आ। सु॒ऽप॒र्णः। धा॒व॒ते॒। दि॒वि। न। वः॒। हि॒र॒ण्य॒ऽने॒म॒यः॒। प॒दम्। वि॒न्द॒न्ति॒। वि॒ऽद्यु॒तः॒। वि॒त्तम्। मे॒। अ॒स्य। रो॒द॒सी॒ इति॑ ॥ १.१०५.१

Rigveda » Mandal:1» Sukta:105» Mantra:1 | Ashtak:1» Adhyay:7» Varga:20» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:15» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब एकसौ पाँचवें सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में चन्द्रलोक कैसा है, इस विषय को कहा है ।

Word-Meaning: - हे (रोदसी) सूर्यप्रकाश वा भूमि के तुल्य राज और प्रजा जनसमूह ! (मे) मुझ पदार्थ विद्या जाननेवाले की उत्तेजना से जो (अप्सु) प्राणरूपी पवनों के (अन्तः) बीच (सुपर्णः) अच्छा गमन करने वा (चन्द्रमाः) आनन्द देनेवाला चन्द्रलोक (दिवि) सूर्य के प्रकाश में (आ, धावते) अति शीघ्र घूमता है और (हिरण्यनेमयः) जिनको सुवर्णरूपी चमक-दमक चिलचिलाहट है वे (विद्युतः) बिजुली लपट-झपट से दौड़ती हुई (वः) तुम लोगों की (पदम्) विचारवाली शिल्प चतुराई को (न) नहीं (विन्दन्ति) पाती हैं अर्थात् तुम उनको यथोचित काम में नहीं लाते हो (अस्य) इस पूर्वोक्त विषय को तुम (वित्तम्) जानो ॥ १ ॥
Connotation: - हे राजा और प्रजा के पुरुष ! जो चन्द्रमा की छाया और अन्तरिक्ष के जल के संयोग से शीतलता का प्रकाश है उसको जानो तथा जो बिजुली लपट-झपट से दमकती हैं वे आखों से देखने योग्य हैं और जो विलाय जाती हैं उनका चिह्न भी आँख से देखा नहीं जा सकता, इस सबको जानकर सुख को उत्पन्न करो ॥ १ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ चन्द्रलोकः कीदृश इत्युपदिश्यते ।

Anvay:

हे रोदसी मे मम सकाशाद् योप्स्वन्तः सुपर्णश्चन्द्रमा दिव्याधावते हिरण्यनेमयो विद्युतश्च धावत्यो वः पदं न विन्दन्त्यस्य पूर्वोक्तस्येमं पूर्वोक्तं विषयं युवां वित्तम् ॥ १ ॥

Word-Meaning: - (चन्द्रमाः) आह्लादकारक इन्दुलोकः (अप्सु) प्राणभूतेषु वायुषु (अन्तः) (आ) (सुपर्णः) शोभनं पर्णं पतनं गमनं यस्य (धावते) (दिवि) सूर्य्यप्रकाशे (न) निषेधे (वः) युष्माकम् (हिरण्यनेमयः) हिरण्यस्वरूपा नेमिः सीमा यासां ताः (पदम्) विचारमयं शिल्पव्यवहारम् (विन्दन्ति) लभन्ते (विद्युतः) सौदामिन्यः (वित्तम्) विजानीतम् (मे) मम पदार्थविद्याविदः सकाशात् (अस्य) (रोदसी) द्यावापृथिव्याविव राजप्रजे जनसमूहौ ॥ १ ॥
Connotation: - हे राजप्रजापुरुषौ यश्चन्द्रमसश्छायान्तरिक्षजलसंयोगेन शीतलत्वप्रकाशस्तं विजानीतम्। या विद्युतः प्रकाशन्ते ताश्चक्षुर्ग्राह्या भवन्ति याः प्रलीनास्तासां चिह्नं चक्षुषा ग्रहीतुमशक्यम्। एतत्सर्वं विदित्वा सुखं संपादयेतम् ॥ १ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात संपूर्ण विद्वानांचे गुण व कर्म यांच्या वर्णनाने या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणावी. ॥

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - हे राजा व प्रजाजनहो! चंद्राची छाया व अंतरिक्षातील जलाच्या संयोगाने शीतलता असते हे जाणा, तसेच विद्युत अग्निशिखेप्रमाणे चमकते ती डोळ्यानी पाहता येते व नष्ट होते. नंतर तिचे चिन्हही पाहता येत नाही हे सर्व जाणून सुख उत्पन्न करा. ॥ १ ॥