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तत्त॑ इन्द्रि॒यं प॑र॒मं प॑रा॒चैरधा॑रयन्त क॒वय॑: पु॒रेदम्। क्ष॒मेदम॒न्यद्दि॒व्य१॒॑न्यद॑स्य॒ समी॑ पृच्यते सम॒नेव॑ के॒तुः ॥

English Transliteration

tat ta indriyam paramam parācair adhārayanta kavayaḥ puredam | kṣamedam anyad divy anyad asya sam ī pṛcyate samaneva ketuḥ ||

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Pad Path

तत्। ते॒। इ॒न्द्रि॒यम्। प॒र॒मम्। प॒रा॒चैः। अधा॑रयन्त। क॒वयः॑। पु॒रा। इ॒दम्। क्ष॒मा। इ॒दम्। अ॒न्यत्। दि॒वि। अ॒न्यत्। अ॒स्य॒। सम्। ई॒म् इति॑। पृ॒च्य॒ते॒। स॒म॒नाऽइ॑व। के॒तुः ॥ १.१०३.१

Rigveda » Mandal:1» Sukta:103» Mantra:1 | Ashtak:1» Adhyay:7» Varga:16» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:15» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब एक सौ तीनवें सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र से यह उपदेश है कि ईश्वर का कार्य्य जगत् में कैसा प्रसिद्ध चिह्न है ।

Word-Meaning: - हे जगदीश्वर ! जो (ते) आप वा जीव की सृष्टि में (इदम्) यह प्रत्यक्ष वा अप्रत्यक्ष सामर्थ्य (परमम्) प्रबल अतिउत्तम (इन्द्रियम्) परम ऐश्वर्य्ययुक्त आप और जीव का एक चिह्न जिसको (कवयः) बुद्धिमान् विद्वान् जन (पराचैः) ऊपर के चिह्नों से सहित (पुरा) प्रथम (अधारयन्त) धारण करते हुए (क्षमा) सबको सहनेवाली पृथिवी (इदम्) इस वर्त्तमान चिह्न को धारण करती जो (दिवि) प्रकाशमान सूर्य्य आदि लोक में वर्त्तमान वा जो (अन्यत्) उससे भिन्न कारण में वा (अस्य) इस संसार के बीच में है, इसको (ई) जल धारण करता वा जो (अन्यत्) और विलक्षण न देखे हुए कार्य्य में होता है (तत्) उस सबको (समनेव) जैसे युद्ध में सेना आ जुटे ऐसे (केतुः) विज्ञान देनेवाले होते हुए आप वा जीव प्रकाशित करता, यह सब इस जगत् में (संपृच्यते) सम्बद्ध होता है ॥ १ ॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! इस जगत् में जो-जो रचना विशेष चतुराई के साथ अच्छी-अच्छी वस्तु वर्त्तमान है, वह-वह सब परमेश्वर की रचना से ही प्रसिद्ध है यह तुम जानो क्योंकि ऐसा विचित्र जगत् विधाता के विना कभी होने योग्य नहीं। इससे निश्चय है कि इस जगत् का रचनेवाला परमेश्वर है और जीव सम्बन्धी सृष्टि का रचनेवाला जीव है ॥ १ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ परमेश्वरस्य कार्ये जगति कीदृशं प्रसिद्धं लिङ्गमस्तीत्युपदिश्यते ।

Anvay:

हे जगदीश्वर यत्ते तव जीवस्य च सृष्टाविदं परममिन्द्रियं कवयः पराचैः पुरा धारयन्त क्षमा पृथिवीदं धृतवती यद्दिवीदं वर्त्तते यदन्यत्कारणेऽस्त्यस्य संसारस्य मध्ये ई-ईमुदकं धरति यदन्यददृष्टे कार्य्ये भवति तत्सर्वं समनेव केतुः सन्प्रकाशयति तच्चात्र संपृच्यते ॥ १ ॥

Word-Meaning: - (तत्) (ते) तव (इन्द्रियम्) इन्द्रस्य परमैश्वर्य्यवतस्तव जीवस्य च लिङ्गम् (परमम्) प्रकृष्टम् (पराचैः) बाह्यचिह्नैर्युक्तम् (अधारयन्तः) धृतवन्तः (कवयः) मेधाविनो विद्वांसः (पुरा) पूर्वम् (इदम्) प्रत्यक्षाप्रत्यक्षं सामर्थ्यम् (क्षमा) सर्वसहनयुक्ता पृथिवी (इदम्) (वर्त्तमानम्) (अन्यत्) भिन्नम् (दिवि) प्रकाशवति सूर्य्यादौ (अन्यत्) विलक्षणम् (अस्य) संसारस्य मध्ये (सम्) (ई) ईमित्युदकनाम०। निघं० १। १२। छन्दसो वर्णलोपो वेति मलोपः। (पृच्यते) संयुज्यते (समनेव) यथा युद्धे प्रवृत्ता सेना तथा (केतुः) विज्ञापकः ॥ १ ॥
Connotation: - हे मनुष्या यद्यदस्मिञ्जगति रचनाविशेषयुक्तं सुष्ठु वस्तु वर्त्तते तत्तत्सर्वं परमेश्वरस्य रचनेनैव प्रसिद्धमस्तीति विजानीत, नहीदृशं विचित्रं जगद्विधात्रा विना संभवितुमर्हति तस्मादस्ति खल्वस्य जगतो निर्मातेश्वरो जैवीं सृष्टिं कर्त्ता जीवश्चेति निश्चयः ॥ १ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात ईश्वर, सूर्य व सेनाधिपतीच्या गुणांच्या वर्णनाने या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्वसूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणावी. ॥

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - हे माणसांनो! या जगात विशेष चातुर्याने निर्मिती केलेल्या चांगल्या चांगल्या वस्तू आहेत. त्या सर्व परमेश्वरनिर्मितीमुळेच प्रसिद्ध आहेत हे तुम्ही जाणा. कारण असे विचित्र जग विधात्याशिवाय कधी बनू शकत नाही. यामुळे हा निश्चय होतो की या जगाची निर्मिती करणारा परमेश्वर आहे व जीवासंबंधी सृष्टी निर्माण करणारा जीव आहे. ॥ १ ॥