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त्वां दे॒वेषु॑ प्रथ॒मं ह॑वामहे॒ त्वं ब॑भूथ॒ पृत॑नासु सास॒हिः। सेमं न॑: का॒रुमु॑पम॒न्युमु॒द्भिद॒मिन्द्र॑: कृणोतु प्रस॒वे रथं॑ पु॒रः ॥

English Transliteration

tvāṁ deveṣu prathamaṁ havāmahe tvam babhūtha pṛtanāsu sāsahiḥ | semaṁ naḥ kārum upamanyum udbhidam indraḥ kṛṇotu prasave ratham puraḥ ||

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Pad Path

त्वाम्। दे॒वेषु॑। प्र॒थ॒मम्। ह॒वा॒म॒हे॒। त्वम्। ब॒भू॒थ॒। पृत॑नासु। स॒स॒हिः। सः। इ॒मम्। नः॒। का॒रुम्। उ॒प॒ऽम॒न्युम्। उ॒त्ऽभिद॑म्। इन्द्रः॑। कृ॒णो॒तु॒। प्र॒ऽस॒वे। रथ॑म्। पु॒रः ॥ १.१०२.९

Rigveda » Mandal:1» Sukta:102» Mantra:9 | Ashtak:1» Adhyay:7» Varga:15» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:15» Mantra:9


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब सेना का अध्यक्ष कैसा है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे सेनापते ! जिस कारण (त्वम्) आप (पृतनासु) अपनी वा शत्रुओं की सेनाओं में (सासहिः) अतीव सहनशील (बभूथ) होते हैं इससे (देवेषु) विद्वानों में (प्रथमम्) पहिले (त्वाम्) समग्र सेना के अधिपति तुमको (हवामहे) हम लोग स्वीकार करते हैं, जो (इन्द्रः) समस्त ऐश्वर्य के प्रकट करनेहारे आप (प्रसवे) जिसमें वीरजन चिताये जाते हैं उस राज्य में (उद्भिम्) पृथिवी का विदारण करके उत्पन्न होनेवाले काष्ठ विशेष से बनाये हुए (रथम्) विमान आदि रथ को (पुरः) आगे करते हैं (सः) वह आप (नः) हम लोगों के लिये (इमम) इस (उपमन्युम्) समीप में मानने योग्य (कारुम्) क्रिया कौशल काम के करनेवाले जन को (कृणोतु) प्रसिद्ध करें ॥ ९ ॥
Connotation: - मनुष्यों को चाहिये कि जो उत्तम विद्वान्, अपनी सेना को पालन और शत्रुओं के बल को विदारने में चतुर, शिल्पकार्य्यों को जाननेवाला, प्रेमी, युद्ध में आगे होने से अत्यन्त युद्ध करता है, उसी को सेना का अधीश करें ॥ ९ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ सेनाध्यक्षः कीदृश इत्युपदिश्यते ।

Anvay:

हे सेनापते यतस्त्वं पृतनासु सासहिर्बभूथ तस्माद् देवेषु प्रथमं त्वां वयं हवामहे। य इन्द्रो भवान् प्रसव उद्भिदं रथं पुरः करोति स नोऽस्मभ्यमिममुपमन्युं कारुं कृणोतु ॥ ९ ॥

Word-Meaning: - (त्वाम्) सर्वसेनाधिपतिम् (देवेषु) विद्वत्सु (प्रथमम्) आदिमम् (हवामहे) स्वीकुर्महे (त्वम्) (बभूथ) भवसि। बभूथाततन्थ० इतीडभावो निपातनात्। (पृतनासु) स्वेषां शत्रूणां वा सेनासु (सासहिः) अतिशयेन षोढा (सः) सोऽचि लोपे चेत्पादपूरणमिति सुलोपः। (इमम्) प्रत्यक्षम् (नः) अस्मभ्यम् (कारुम्) शिल्पकार्यकर्त्तारम् (उपमन्युम्) उपसमीपे मन्तुं योग्यम् (उद्भिदम्) पृथिवीं भित्वा जातेन काष्ठेन निर्मितम् (इन्द्रः) अखिलैश्वर्यकारकः (कृणोतु) (प्रसवे) प्रकृष्टतया सुवन्ति प्रेरयन्ति वीरान् यस्मिन् राज्ये तस्मिन् (रथम्) विमानादियानम् (पुरः) पुरःसरम् ॥ ९ ॥
Connotation: - मनुष्यैर्य उत्तमो विद्वान् स्वसेनापालने शत्रुबलविदारणे चतुरः शिल्पवित् प्रियो युद्धे पुरःसरणादतियोद्धा वर्त्तते स एव सेनापतिः कर्त्तव्यः ॥ ९ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - माणसांनी, जो उत्तम विद्वान, आपल्या सेनेचे पालन व शत्रूच्या बलाचे विदारण करण्यात चतुर, शिल्पकार्यांना जाणणारा, प्रेमळ, युद्धात समोर राहून प्रचंड युद्ध करतो, त्यालाच सेनापती करावे. ॥ ९ ॥