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त्वं जि॑गेथ॒ न धना॑ रुरोधि॒थार्भे॑ष्वा॒जा म॑घवन्म॒हत्सु॑ च। त्वामु॒ग्रमव॑से॒ सं शि॑शीम॒स्यथा॑ न इन्द्र॒ हव॑नेषु चोदय ॥

English Transliteration

tvaṁ jigetha na dhanā rurodhithārbheṣv ājā maghavan mahatsu ca | tvām ugram avase saṁ śiśīmasy athā na indra havaneṣu codaya ||

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Pad Path

त्वम्। जि॒गे॒थ॒। न। धना॑। रु॒रो॒धि॒थ॒। अर्भे॑षु। आ॒जा। म॒घ॒ऽव॒न्। म॒हत्ऽसु॑। च॒। त्वाम्। उ॒ग्रम्। अव॑से। सम्। शि॒शी॒म॒सि॒। अथ॑। नः॒। इ॒न्द्र॒। हव॑नेषु। चो॒द॒य॒ ॥ १.१०२.१०

Rigveda » Mandal:1» Sukta:102» Mantra:10 | Ashtak:1» Adhyay:7» Varga:15» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:15» Mantra:10


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह क्या करे, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (मघवन्) परम सराहने योग्य धन आदि सामग्री लिये हुए (इन्द्र) शत्रुओं के विदारनेवाले सेनापति ! जो (त्वम्) आप चतुरङ्ग अर्थात् चौतरफी नाकेबन्दी की सेना सहित (अर्भेषु) थोड़े (महत्सु) बड़े (च) और मध्यम (आजा) संग्रामों में शत्रुओं को (जिगेथ) जीते हुए हो और उक्त संग्रामों में (धना) धन आदि पदार्थों को (न) न (रुरोधिथ) रोकते हो, उन (उग्रम्) शत्रुओं के बल को विदीर्ण करने में अत्यन्त बली (त्वाम्) आपको (अवसे) रक्षा आदि के लिये स्वीकार करके हम लोग शत्रुओं को (संशिशीमसि) अच्छे प्रकार निर्मूल नष्ट करते हैं, (अथ) इसके अनन्तर आप भी ऐसा कीजिये कि (हवनेषु) ग्रहण करने योग्य कामों में (नः) हम लोगों को (चोदय) प्रवृत्त कराइये ॥ १० ॥
Connotation: - जो मनुष्य शत्रुओं और समय को पाकर धनों को जीतने, श्रेष्ठ कामों में सबको लगाने और दुष्टों को छिन्न-भिन्न करनेवाला हो, वही सबको सेनाओं का अधीश मानना चाहिये ॥ १० ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स किं कुर्यादित्युपदिश्यते ।

Anvay:

हे मघवन्निन्द्र यस्त्वमर्भेषु महत्सु मध्यस्थेषु चाजा शत्रून् जिगेथ धना न रुरोधिथ तमुग्रं त्वामवसे स्वीकृत्य शत्रून् संशिशीमसि। अथ हवनेषु नोऽस्मान् चोदय ॥ १० ॥

Word-Meaning: - (त्वम्) चतुरङ्गसेनायुक्तः (जिगेथ) जितवानसि (न) निषेधे (धना) धनानि (रुरोधिथ) रुद्धवानसि (अर्भेषु) अल्पेषु (आजा) आजिषु संग्रामेषु (मघवन्) परमपूज्यधनादिसामग्रीयुक्त (महत्सु) (च) मध्यस्थेषु (त्वाम्) (उग्रम्) शत्रुबलविदारणक्षमम् (अवसे) रक्षणाद्याय (सम्) (शिशीमसि) शत्रून् सूक्ष्मान् जीर्णान् कुर्मः। अत्र शो तनूकरण इत्यस्माल्लटि श्यनः स्थाने व्यत्ययेन श्लुः। आकारादेशः। (अथ) अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (नः) अस्माकमस्मान् वा (इन्द्र) शत्रूणां विदारक (हवनेषु) आदानयोग्येषु कर्मसु (चोदय) ॥ १० ॥
Connotation: - यो मनुष्यः शत्रूणां समयं प्राप्य धनानां च विजेता सत्कर्मसु प्रेरको दुष्टानां छेत्तास्ति स एव सर्वैः सेनापतिर्मन्तव्यः ॥ १० ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जो माणूस शत्रूंना जिंकून व समयानुकूल धन जिंकणारा, श्रेष्ठ कामात त्यांना लावणारा, दुष्टांचा नाश करणारा असतो त्यालाच सर्वांनी सेनापती मानले पाहिजे. ॥ १० ॥