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रु॒द्राणा॑मेति प्र॒दिशा॑ विचक्ष॒णो रु॒द्रेभि॒र्योषा॑ तनुते पृ॒थु ज्रय॑:। इन्द्रं॑ मनी॒षा अ॒भ्य॑र्चति श्रु॒तं म॒रुत्व॑न्तं स॒ख्याय॑ हवामहे ॥

English Transliteration

rudrāṇām eti pradiśā vicakṣaṇo rudrebhir yoṣā tanute pṛthu jrayaḥ | indram manīṣā abhy arcati śrutam marutvantaṁ sakhyāya havāmahe ||

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Pad Path

रु॒द्रा॒णा॑म्। ए॒ति॒। प्र॒ऽदिशा॑। वि॒ऽच॒क्ष॒णः। रु॒द्रेभिः॑। योषा॑। त॒नु॒ते॒। पृ॒थु। ज्रयः॑। इन्द्र॑म्। म॒नी॒षा। अ॒भि। अ॒र्च॒ति॒। श्रु॒तम्। म॒रुत्व॑न्तम्। स॒ख्याय॑। ह॒वा॒म॒हे॒ ॥ १.१०१.७

Rigveda » Mandal:1» Sukta:101» Mantra:7 | Ashtak:1» Adhyay:7» Varga:13» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:15» Mantra:7


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह कैसा हो, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - (विचक्षणः) प्रशंसित चतुराई आदि गुणों से युक्त विद्वान् (रुद्राणाम्) प्राणों के समान बुरे-भलों को रुलाते हुए विद्वानों के (प्रदिशा) ज्ञानमार्ग से (पृथु) विस्तृत (ज्रयः) प्रताप को (एति) प्राप्त होता है और (रुद्रेभिः) प्राण वा छोटे-छोटे विद्यार्थियों के साथ (योषा) विद्या से मिली और मूर्खपन से अलग हुई स्त्री उसको (तनुते) विस्तारती है, इससे जो विचक्षण विद्वान् (मनीषा) प्रशंसित बुद्धि से (श्रुतम्) प्रख्यात (इन्द्रम्) शाला आदि के अध्यक्ष का (अभ्यर्चति) सब ओर से सत्कार करता उस (मरुत्वन्तम्) अपने समीप पढ़ानेवालों को रखनेवाले को (सख्याय) मित्रपन के लिये हम लोग (हवामहे) स्वीकार करते हैं ॥ ७ ॥
Connotation: - जिन मनुष्यों से प्राणायामों से प्राणों को, सत्कार से श्रेष्ठों और तिरस्कार से दुष्टों को वश में कर समस्त विद्याओं को फैलाकर परमेश्वर वा अध्यापक का अच्छे प्रकार मान-सत्कार करके उपकार के साथ सब प्राणी सत्कारयुक्त किये जाते हैं, वे सुखी होते हैं ॥ ७ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ।

Anvay:

विचक्षणो विद्वान् रुद्राणां पृथु ज्रय एति रुद्रेभिर्योषा तत् तनुते चातो यो विचक्षणो मनीषा श्रुतमिन्द्रमभ्यर्चति तं मरुत्वन्तं सख्याय वयं हवामहे ॥ ७ ॥

Word-Meaning: - (रुद्राणाम्) प्राणानामिव दुष्टान् रोदयताम् (एति) प्राप्नोति (प्रदिशा) प्रदेशेन ज्ञानमार्गेण। अत्र घञर्थे कविधानमिति कः सुपां सुलुगित्याकारादेशश्च। (विचक्षणः) प्रशस्तचातुर्यादिगुणोपेतः (रुद्रेभिः) प्राणैर्विद्यार्थिभिः सह (योषा) विद्याभिर्मिश्रिताया अविद्याभिः पृथग्भूतायाः स्त्रियाः। अत्र यु धातोर्बाहुलकात्कर्मणि सः प्रत्ययः। (तनुते) विस्तृणाति (पृथु) विस्तीर्णम्। प्रथिम्रदिभ्रस्जां संप्रसारणं सलोपश्च। उ० १। २८। इति प्रथधातोः कुः प्रत्ययः संप्रसारणं च। (ज्रयः) तेजः (इन्द्रम्) शालाद्यधिपतिम् (मनीषा) मनीषया प्रशस्तबुद्ध्या। अत्र सुपां सुलुगिति तृतीयाया एकवचनस्याकारादेशः। (अभि) (अर्चति) सत्करोति (श्रुतम्) प्रख्यातम् (मरुत्वन्तं०) इति पूर्ववत् ॥ ७ ॥
Connotation: - यैर्मनुष्यैः प्राणायामैः प्राणान् सत्कारेण श्रेष्ठान् तिरस्कारेण दुष्टान् विजित्य सकला विद्या विस्तार्य्य परमेश्वरमध्यापकं वाभ्यर्च्योपकारेण सर्वे प्राणिनः सत्क्रियन्ते ते सुखिनो भवन्ति ॥ ७ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जी माणसे प्राणायामाने प्राणांना, सत्काराने श्रेष्ठांना, तिरस्काराने दुष्टांना वशमध्ये ठेवतात, त्यांच्याकडून संपूर्ण विद्यांचा प्रसार होतो. परमेश्वर व अध्यापकाचा चांगला मान व सत्कार केला जातो. उपकारपूर्वक सर्व प्राण्यांचा सत्कार केला जातो. त्यामुळे ते सुखी होतात. ॥ ७ ॥