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यो विश्व॑स्य॒ जग॑तः प्राण॒तस्पति॒र्यो ब्र॒ह्मणे॑ प्रथ॒मो गा अवि॑न्दत्। इन्द्रो॒ यो दस्यूँ॒रध॑राँ अ॒वाति॑रन्म॒रुत्व॑न्तं स॒ख्याय॑ हवामहे ॥

English Transliteration

yo viśvasya jagataḥ prāṇatas patir yo brahmaṇe prathamo gā avindat | indro yo dasyūm̐r adharām̐ avātiran marutvantaṁ sakhyāya havāmahe ||

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Pad Path

यः। विश्व॑स्य। जग॑तः। प्रा॒ण॒तः। पतिः॑। यः। ब्र॒ह्मणे॑। प्रथ॒मः। गाः। अवि॑न्दत्। इन्द्रः॑। यः। दस्यू॑न्। अध॑रान्। अ॒व॒ऽअति॑रत्। म॒रुत्व॑न्तम्। स॒ख्याय॑। ह॒वा॒म॒हे॒ ॥ १.१०१.५

Rigveda » Mandal:1» Sukta:101» Mantra:5 | Ashtak:1» Adhyay:7» Varga:12» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:15» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब सेनाध्यक्ष कैसा होता है, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - (यः) जो उत्तम दानशील (प्रथमः) सबका विख्यात करनेवाला (इन्द्रः) इन्द्रियों से युक्त जीव (ब्रह्मणे) चारों वेदों के जाननेवाले के लिये (गाः) पृथिवी, इन्द्रियों और प्रकाशयुक्त लोकों को (अविन्दत्) प्राप्त होता वा (यः) जो शूरता आदि गुणवाला वीर (दस्यून्) हठ से औरों का धन हरनेवालों को (अधरान्) नीचता को प्राप्त कराता हुआ (अवातिरत्) अधोगति को पहुँचाता वा (यः) जो सेनाधिपति (विश्वस्य) समग्र (जगतः) जङ्गमरूप (प्राणतः) जीवते जीवसमूह का (पतिः) अधिपति अर्थात् स्वामी हो, उस (मरुत्वन्तम्) अपने समीप पढ़ानेवालों को रखनेवाले सभाध्यक्ष को हम लोग (सख्याय) मित्रपन के लिये (हवामहे) स्वीकार करते हैं ॥ ५ ॥
Connotation: - पुरुषार्थ के विना विद्या, अन्न और धन की प्राप्ति तथा शत्रुओं का पराजय नहीं हो सकता, जो धार्मिक सेनाध्यक्ष सुहृद्भाव से अपने प्राण के समान सबको प्रसन्न करता है, उस पुरुष को निश्चय है कि कभी दुःख नहीं होता, इससे उक्त विषय का आचरण सदा करना चाहिये ॥ ५ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ सेनाध्यक्षः कीदृश इत्युपदिश्यते ।

Anvay:

यः प्रथम इन्द्रो ब्रह्मणे गा अविन्दत्। यो दस्यूनधरानवातिरत्। यो विश्वस्य जगतः प्राणतस्पतिर्वर्त्तते तं मरुत्वन्तं सख्याय वयं हवामहे ॥ ५ ॥

Word-Meaning: - (यः) सेनापतिः (विश्वस्य) समग्रस्य (जगतः) जङ्गमस्य (प्राणतः) प्राणतो जीवतः। अत्र षष्ठ्याः पतिपुत्र०। (अ० ८। ३। ५३। ) इति विसर्जनीयस्य सः। (पतिः) अधिष्ठाता (यः) प्रदाता (ब्रह्मणे) चतुर्वेदविदे (प्रथमः) सर्वस्य प्रथयिता। अत्र प्रथेरमच्। उ० ५। ६८। (गाः) पृथिवीरिन्द्रियाणि प्रकाशयुक्तान् लोकान् वा (अविन्दन्) प्राप्नोति (इन्द्रः) इन्द्रियवान् जीवः (यः) शौर्यादिगुणयुक्तः (दस्यून्) सहसा परपदार्थहर्त्तॄन् (अधरान्) नीचान् (अवातिरत्) अधःप्रापयति (मरुत्वन्त०) इति पूर्ववत् ॥ ५ ॥
Connotation: - पुरुषार्थेन विना विद्याऽन्नधनप्राप्तिर्न जायते शत्रुपराजयश्च। यो धार्मिकः सेनाध्यक्षः सुहृद्भावेन स्वप्राणवत्सर्वान्प्रीणयति तस्य कदाचित्खलु दुःखं न जायते तस्मादेतत्सदाचरणीयम् ॥ ५ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - पुरुषार्थाशिवाय विद्या, अन्न, धनाची प्राप्ती व शत्रूंचा पराभव होऊ शकत नाही. जो धार्मिक सेनाध्यक्ष सुहृदभावाने आपल्या प्राणाप्रमाणे सर्वांना प्रसन्न करतो त्या पुरुषाला कधीही दुःख होत नाही. त्यामुळे अशा प्रकारचे आचरण सदैव करावे. ॥ ५ ॥