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स म॑न्यु॒मीः स॒मद॑नस्य क॒र्तास्माके॑भि॒र्नृभि॒: सूर्यं॑ सनत्। अ॒स्मिन्नह॒न्त्सत्प॑तिः पुरुहू॒तो म॒रुत्वा॑न्नो भव॒त्विन्द्र॑ ऊ॒ती ॥

English Transliteration

sa manyumīḥ samadanasya kartāsmākebhir nṛbhiḥ sūryaṁ sanat | asminn ahan satpatiḥ puruhūto marutvān no bhavatv indra ūtī ||

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Pad Path

सः। म॒न्यु॒ऽमीः। स॒ऽमद॑नस्य। क॒र्ता। अ॒स्माके॑भिः। नृऽभिः॑। सूर्य॑म्। स॒न॒त्। अ॒स्मिन्। अह॑न्। सत्ऽप॑तिः। पु॒रु॒ऽहू॒तः। म॒रुत्वा॑न्। नः॒। भ॒व॒तु॒। इन्द्रः॑। ऊ॒ती ॥ १.१००.६

Rigveda » Mandal:1» Sukta:100» Mantra:6 | Ashtak:1» Adhyay:7» Varga:9» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:15» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह कैसा है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - जो (मन्युमीः) क्रोध का मारने वा (समदनस्य) जिसमें आनन्द है उसका (कर्त्ता) करने और (सत्पतिः) सज्जन तथा उत्तम कामों को पालनेहारा (पुरुहूतः) वा बहुत विद्वान् और शूरवीरों ने जिसकी स्तुति और प्रशंसा की है (मरुत्वान्) जिसकी सेना में अच्छे-अच्छे वीरजन हैं (इन्द्रः) वह परमैश्वर्यवान् सेनापति (अस्माकेभिः) हमारे शरीर, आत्मा और बल के तुल्य बलों से युक्त वीर (नृभिः) मनुष्यों के साथ वर्त्तमान होता हुआ (सूर्य्यम्)) सूर्य के प्रकाशतुल्य युद्ध न्याय को (सनत्) अच्छे प्रकार सेवन करे (सः) वह (अस्मिन्) आज के दिन (नः) हम लोगों के (ऊती) रक्षा आदि व्यवहार के लिये निरन्तर (भवतु) हो ॥ ६ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे सूर्य को प्राप्त होकर सब पदार्थ अलग-अलग प्रकाशित हुए आनन्द के करनेवाले होते हैं वैसे ही धार्मिक न्यायाधीशों को प्राप्त होकर पुत्र, पौत्र, स्त्रीजन तथा सेवकों के साथ वर्त्तमान विद्या, धर्म और न्याय में प्रसिद्ध आचरणवाले होकर मनुष्य अपने और दूसरों के कल्याण करनेवाले होते हैं। जो सब कभी क्रोध को अपने वश में करने और सब प्रकार से नित्य प्रसन्नता आनन्द करनेवाला होता है, वही सेनाधीश होने में नियत करने योग्य होता है। जो बीते हुए व्यवहार के बचे हुए को जाने, चलते हुए व्यवहार में शीघ्र कर्त्तव्य काम के विचार में तत्पर है, वही सर्वदा विजय को प्राप्त होता है, दूसरा नहीं ॥ ६ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ।

Anvay:

यो मन्युमीः समदनस्य कर्त्ता सत्पतिः पुरुहूतो मरुत्वानिन्द्रः परमैश्वर्य्यवान्सेनापतिरस्माकेभिर्नृभिः सह वर्त्तमानः सन् सूर्यमिव युद्धन्यायं सनत्संभजेत्सोऽस्मिन्नहन् नः सततमूती भवतु ॥ ६ ॥

Word-Meaning: - (सः) (मन्युमीः) यो मन्युं मीनाति हिनस्ति सः (समदनस्य) मदनं हर्षणं यस्मिन्नस्ति तेन सहितस्य (कर्त्ता) निष्पादकः (अस्माकेभिः) अस्मदीयैः शरीरात्मबलयुक्तै वीरैः (नृभिः) मनुष्यैः सहितः (सूर्य्यम्) सवितृप्रकाशमिव युद्धन्यायम् (सनत्) संभजेत्। लेट्प्रयोगोऽयम्। (अस्मिन्) प्रत्यक्षे (अहन्) अहनि (सत्पतिः) सतां पुरुषाणां वा पालकः (पुरुहूतः) पुरुभिर्बहुभिर्विद्वद्भिः शूरवीरैर्वाहूतः स्पर्द्धितो वा (मरुत्वान्नो०) इति पूर्ववत् ॥ ६ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा सूर्यं प्राप्य समस्ताः पदार्था विभक्ताः प्रकाशिताः सन्त आनन्दकारका भवन्ति तथैव धार्मिकान् न्यायाधीशान् प्राप्य पुत्रपौत्रकलत्रभृत्यादिभिः सह वर्त्तमाना विद्याधर्मन्यायेषु प्रसिद्धाऽऽचरणा जना भूत्वा कल्याणकारका भवन्ति, यः सर्वदा क्रोधजित्सर्वथा नित्यं प्रसन्नताकारको भवति स एव सैन्यापत्याधिकारेऽभिषेक्तुं योग्यो भवति। यो भूतकालो शेषज्ञो वर्त्तमानकाले क्षिप्रकारी विचारशीलोऽस्ति स एव सर्वदा विजयी भवति नेतरः ॥ ६ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे सूर्यप्रकाशामुळे सर्व पदार्थ पृथक पृथक दृश्यमान होतात व आनंददायी ठरतात तसेच धार्मिक न्यायाधीशांना प्राप्त करून पुत्र, पौत्र, स्त्रिया व सेवक यांच्यासह विद्या धर्म न्यायाने प्रसिद्ध आचरण करणारी माणसे आपले व दुसऱ्याचे कल्याण करणारी असतात. जो सर्व प्रकारे क्रोधाला आपल्या ताब्यात ठेवून सर्व प्रकारे सदैव प्रसन्नता व आनंद देणारा असतो, तोच सेनाधीश म्हणून नियुक्त करण्यायोग्य असतो. जो भूतकालीन अनुभवाने वर्तमानकाळातील व्यवहाराबाबत कर्तव्यदक्ष असतो, तोच नेहमी विजय प्राप्त करतो, अन्य नव्हे. ॥ ६ ॥