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स व॑ज्र॒भृद्द॑स्यु॒हा भी॒म उ॒ग्रः स॒हस्र॑चेताः श॒तनी॑थ॒ ऋभ्वा॑। च॒म्री॒षो न शव॑सा॒ पाञ्च॑जन्यो म॒रुत्वा॑न्नो भव॒त्विन्द्र॑ ऊ॒ती ॥

English Transliteration

sa vajrabhṛd dasyuhā bhīma ugraḥ sahasracetāḥ śatanītha ṛbhvā | camrīṣo na śavasā pāñcajanyo marutvān no bhavatv indra ūtī ||

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Pad Path

सः। व॒ज्र॒ऽभृत्। द॒स्यु॒ऽहा। भी॒मः। उ॒ग्रः। स॒हस्र॑ऽचेताः। श॒तऽनी॑थः। ऋभ्वा॑। च॒म्री॒षः। न। शव॑सा। पाञ्च॑ऽजन्यः। म॒रुत्वा॑न्। नः॒। भ॒व॒तु॒। इन्द्रः॑। ऊ॒ती ॥ १.१००.१२

Rigveda » Mandal:1» Sukta:100» Mantra:12 | Ashtak:1» Adhyay:7» Varga:10» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:15» Mantra:12


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह कैसा है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - (चम्रीषः) जो अपनी सेना से शत्रुओं की सेनाओं के मारनेहारों के (न) समान (वज्रभृत्) अति कराल शस्त्रों को बाँधने (दस्युहा) डाकू, चोर, लम्पट, लबाड़ आदि दुष्टों को मारने (भीमः) उनको डर और (उग्रः) अति कठिन दण्ड देने (सहस्रचेताः) हजारहों अच्छे प्रकार के ज्ञान प्रकट करनेवाला (शतनीथः) जिसके सैकड़ों यथायोग्य व्यवहारों के वर्त्ताव हैं (पाञ्चजन्यः) जो सब विद्याओं से युक्त पढ़ाने, उपदेश करने, राज्यसम्बन्धी सभा, सेना और सब अधिकारियों के अधिष्ठाताओं में उत्तमता से हुआ (मरुत्वान्) और अपनी सेना में उत्तम वीरों को राखनेवाला (इन्द्रः) परमैश्वर्य्यवान् सेना आदि का अधीश (ऋभ्वा) अतीव (शवसा) बलवान् सेना से शत्रुओं को अच्छे प्रकार प्राप्त होता है (सः) वह (नः) हम लोगों के (ऊती) रक्षा आदि व्यवहारों के लिये (भवतु) होवे ॥ १२ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। मनुष्यों को जानना चाहिए कि कोई मनुष्य धनुर्वेद के विशेष ज्ञान और उसको यथायोग्य व्यवहारों में वर्त्तने और शत्रुओं के मारने में भय के देनेवाले वा तीव्र अगाध सामर्थ्य और प्रबल बढ़ी हुई सेना के विना सेनापति नहीं हो सकता। और ऐसे हुए विना शत्रुओं का पराजय और प्रजा का पालन हो सके, यह भी सम्भव नहीं, ऐसा जानें ॥ १२ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ।

Anvay:

यश्चम्रीषो न वज्रभृद्दस्युहा भीम उग्रः सहस्रचेताः शतनीथः पाञ्चजन्यो मरुत्वानिन्द्रः सेनाद्यधिपतिर्ऋभ्वा शवसा शत्रूत्समजाति स न ऊती भवतु ॥ १२ ॥

Word-Meaning: - (सः) (वज्रभृत्) यो वज्रं शस्त्रास्त्रसमूहं बिभर्त्ति सः (दस्युहा) दुष्टानां चौराणां हन्ता (भीमः) एतेषां भयङ्करः (उग्रः) अतिकठिनदण्डप्रदः (सहस्रचेताः) असंख्यातविज्ञानविज्ञापनः (शतनीथः) शतानि नीथानि यस्य सः (ऋभ्वा) महता (चम्रीषः) ये चमूभिः शत्रुसेना ईषन्ते हिंसन्ति ते (न) इव (शवसा) बलयुक्तेन सैन्येन (पाञ्चजन्यः) पञ्चसु सकलविद्येष्वध्यापकोपदेशकराजसभासेनासर्वजनाधीशेषु जनेषु भवः पाञ्चजन्यः। बहिर्देवपञ्चजनेभ्यश्चेति वक्तव्यम्। अ० ४। ३। ५८। (मरुत्वान्नो भवन्त्विन्द्र०) इति पूर्ववत् ॥ १२ ॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। नहि कश्चिन्मनुष्यो धनुर्वेदविज्ञानप्रयोगाभ्यां शत्रूणां हनने भयप्रदेन तीव्रेण सामर्थ्येन प्रवृद्धेन सैन्येन च विना सेनापतिर्भवितुं शक्नोति नैवं भूतेन विना शत्रुपराजयः प्रजापालनं च संभवतीति वेदितव्यम् ॥ १२ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. माणसांनी हे जाणले पाहिजे की, कुणीही माणूस धनुर्वेदाचे विशेष ज्ञान व ते यथायोग्य व्यवहारात आणणे आणि शत्रूंना मारण्यासाठी भय निर्माण करणे, तीव्र अगाध सामर्थ्य व प्रबल सेना याशिवाय सेनापती बनू शकत नाही. त्याशिवाय शत्रूंचा पराभव व प्रजेचे पालन होणे शक्य नाही, हे जाणावे. ॥ १२ ॥