परमेश्वर के गुणों का उपदेश।
Word-Meaning: - (अहम्) मैं (एव) ही (अमावास्या) अमावास्या [सबके साथ बसी हुई शक्ति] (अस्मि) हूँ, (मयि) मुझ में [वर्तमान होकर] (इमे) यह सब (सुकृतः) सुकर्मी लोग (माम्) लक्ष्मी में (आ वसन्ति) यथावत् वास करते हैं। (मयि) मुझ में (उभये) दोनों प्रकार के (सर्वे) सब (देवाः) दिव्य पदार्थ अर्थात् (साध्याः) साधने योग्य [स्थावर] (च) और (इन्द्रज्येष्ठाः) जीव को प्रधान रखनेवाले [जंगम] पदार्थ (सम्=समेत्य) मिलकर (आगच्छन्त) प्राप्त हुए हैं ॥२॥
Connotation: - इस मन्त्र में (अमावस्या, वसन्ति) पद [वस-रहना, ढाँकना] धातु से बने हैं। परमेश्वर सब मनुष्यों को उपदेश करता है कि वह अन्तर्यामी होकर समस्त, चर और अचर संसार को अपने वश में रखता है ॥२॥ यजुर्वेद अ० ४० म० १ में ऐसा वचन है। ई॒शा वा॒स्य॑मि॒दं सर्वं॒ यत् किञ्च॒ जग॑त्यां॒ जग॑त् ॥ (इदम् सर्वम्) यह सब, (यत् किंच) जो कुछ (जगत्याम्) सृष्टि में (जगत्) जगत् है, (ईशा) ईश्वर से (वास्यम्) वसा हुआ है ॥