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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
वीरों के कर्त्तव्य का उपदेश।
Word-Meaning: - (सांतपनाः) हे बड़े ऐश्वर्य में रहनेवाले ! (रिशादसः) हे हिंसकों के मारनेवाले (मरुतः) शूर विद्वान् मनुष्यो ! (अस्माक) हमारी (ऊती) रक्षा के लिये (इदम्) इस और (तत्) उस (हविः) ग्रहणयोग्य योग्य कर्म को (जुजुष्टन) स्वीकार करो ॥१॥
Connotation: - पराक्रमी विद्वान् मनुष्य प्रजा की पुकार को सब प्रकार सुनकर रक्षा करें ॥१॥ इस सूक्त का मिलान अ० १।२०।१। से करो ॥ यह मन्त्र कुछ भेद से ऋग्वेद में है−७।५९।९।
Footnote: १−(सांतपनाः) सम्+तप ऐश्वर्ये-ल्युट्। तत्र भवः। पा० ४।३।५३। अण्। संतपने पूर्णैश्वर्ये भवा वर्तमानाः (इदम्) समीपस्थम् (हविः) ग्राह्यं कर्म (मरुतः) अ० १।२०।१। शूराः। विद्वांसः। ऋत्विजः-निघ० ३।१८। (तत्) दूरस्थम् (जुजुष्ठन) जुषतेः शपः श्लुः, तस्य तनादेशश्च। स्वीकुरुत (अस्माक) अस्माकम् (ऊती) चतुर्थ्याः पूर्वसवर्णदीर्घः। ऊतये रक्षार्थम् (रिशादसः) अ० २।२८।२। हिंसकानां हिंसकाः ॥