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मु॒ञ्चन्तु॑ मा शप॒थ्या॒दथो॑ वरु॒ण्यादु॒त। अथो॑ य॒मस्य॒ पड्वी॑शा॒द्विश्व॑स्माद्देवकिल्बि॒षात् ॥

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मुञ्चन्तु । मा । शपथ्यात् । अथो इति । वरुण्यात् । उत । अथो इति । यमस्‍य । पड्वीशात् । विश्वस्मात् । देवऽकिल्बिषात् ॥११७.२॥

Atharvaveda » Kand:7» Sukta:112» Paryayah:0» Mantra:2


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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

इन्द्रियों के जय का उपदेश।

Word-Meaning: - वे [व्यापनशील इन्द्रियाँ-म० १] (मा) मुझको (शपथ्यात्) शपथ सम्बन्धी (अथो) और (वरुण्यात्) श्रेष्ठों में हुए [अपराध] से (अथो) और (यमस्य) न्यायकारी राजा के (पड्वीशात्) बेड़ी डालने से (उत) और (विश्वस्मात्) सब (देवकिल्बिषात्) परमेश्वर के प्रति अपराध से (मुञ्चन्तु) मुक्त करें ॥२॥
Connotation: - मनुष्य प्रमाद छोड़कर इन्द्रियों को जीतकर सब प्रकार के दोषों से बचें ॥२॥ यह मन्त्र आ चुका है। अ० ६।९६।२ ॥
Footnote: २−(मुञ्चन्तु) मोचयन्तु (ताः) आपः-म० १। (देवकिल्बिषात्) परमेश्वरं प्रति दोषात्। अन्यद् व्याख्यातम्-अ० ६।९६।२ ॥