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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
इन्द्रियों के जय का उपदेश।
Word-Meaning: - वे [व्यापनशील इन्द्रियाँ-म० १] (मा) मुझको (शपथ्यात्) शपथ सम्बन्धी (अथो) और (वरुण्यात्) श्रेष्ठों में हुए [अपराध] से (अथो) और (यमस्य) न्यायकारी राजा के (पड्वीशात्) बेड़ी डालने से (उत) और (विश्वस्मात्) सब (देवकिल्बिषात्) परमेश्वर के प्रति अपराध से (मुञ्चन्तु) मुक्त करें ॥२॥
Connotation: - मनुष्य प्रमाद छोड़कर इन्द्रियों को जीतकर सब प्रकार के दोषों से बचें ॥२॥ यह मन्त्र आ चुका है। अ० ६।९६।२ ॥
Footnote: २−(मुञ्चन्तु) मोचयन्तु (ताः) आपः-म० १। (देवकिल्बिषात्) परमेश्वरं प्रति दोषात्। अन्यद् व्याख्यातम्-अ० ६।९६।२ ॥