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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
ओषधियों के गुणों का उपदेश।
Word-Meaning: - (सोमराज्ञीः) बड़े ऐश्वर्यवाले परमेश्वर वा चन्द्रमा वा सोमलता को राजा रखनेवाली, (शतविचक्षणाः) सैकड़ों कथनीय और दर्शनीय शुभ गुणोंवाली और (बृहस्पतिप्रसूताः) बृहस्पतियों बड़े विद्वानों द्वारा काम में लायी गयीं, (बह्वीः) बहुत सी (याः) जो (औषधयः) ताप नाश करनेवाली ओषधि हैं, (ताः) वे (नः) हमको (अंहसः) रोग से (मुञ्चन्तु) मुक्त करें ॥१॥
Connotation: - मनुष्य ईश्वररचित ओषधियों का यथावत् परीक्षणपूर्वक सेवन करके स्वस्थ रह कर आनन्द पावें ॥१॥ यह मन्त्र कुछ भेद से ऋग्वेद में है−म० १०।९७।१८, १५ और यजु० १२।९२, ८९ ॥
Footnote: १−(याः) (ओषधयः) अ० १।२३।१। ओष+धेट् पाने−कि। ओषस्य तापस्य पिबन्त्यो नाशयित्र्यः (सोमराज्ञीः) सर्वैश्वर्ययुक्तः परमेश्वरश्चन्द्रः सोमो वा राजा शासको यासां ताः (बह्वीः) बह्व्यः। अनेकविधाः (शतविचक्षणाः) चक्षिङ् व्यक्तायां वाचि दर्शने च−ल्यु। बहुकथनीया दर्शनीयशुभगुणाः (बृहस्पतिप्रसूताः) विद्वद्भिः प्रेरिता विनियुक्ताः (ताः) ओषधयः (नः) अस्मान् (मुञ्चन्तु) मोचयन्तु (अंहसः) रागात् ॥