Reads times
PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
राज्य बढ़ाने का उपदेश।
Word-Meaning: - (यथा) जैसे (तायादरम्) प्रबन्ध से आदरयोग्य (पसः) राज्य (वातेन) उद्योग से (स्थूलभम्) मनुष्यों में प्रकाशवाला (कृतम्) बनाया जाता है, (यावत्) जितना (परस्वतः) पालने में समर्थ पुरुष का (पसः) राज्य होता है, (तावत्) उतना (ते) तेरा (पसः) राज्य (वर्धताम्) बढ़े ॥२॥
Connotation: - जिस प्रकार नीतिनिपुण, उद्योगी और प्रजापालक राजा के राज्य में उन्नति होती है, वैसे ही शुभ गुणों द्वारा मनुष्य अपना राज्य बढ़ावें ॥२॥
Footnote: २−(यथा) (पसः) अ० ४।४।६। पस बन्धे बाधे च−असुन्। राज्यम् (तायादरम्) ताय−आदरम्। तायृ सन्तानपालनयोः−घञ्, सन्तानः प्रबन्धः। तायेन प्रबन्धेनादरः सत्कारो यस्य तद्राज्यम् (वातेन) वा गतिगन्धनयोः−तन्। उद्योगेन (स्थूलभम्) स्थः किच्च। उ० ५।४। इति ष्ठा−ऊरन्, रस्य लः। भा दीप्तौ−ड। स्थूरेषु मनुष्येषु भातीति तत् (कृतम्) अनुष्ठितम् (यावत्) यत्प्रमाणम्। बहुविस्तीर्णमित्यर्थः (परस्वतः) सर्वधातुभ्योऽसुन्। उ० ४।१८९। इति पॄ पालनपूरणयोः−असुन्। पालनवतः पुरुषस्य (पसः) राज्यप्रबन्धः (तावत्) तत्परिमाणविशिष्टम् (ते) तव (वर्धताम्) प्रवृद्धं भवतु (पसः) राज्यम् ॥