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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
बालक के अन्नप्राशन का उपदेश।
Word-Meaning: - (व्याघ्रौ) व्याघ्र के समान बलवान् (यौ) जो (दन्तौ) ऊपर नीचे के दाँत (अवरूढौ) उत्पन्न होकर (पितरम्) पिता को (च) और (मातरम्) माता को (जिघत्सतः) काटने की इच्छा करते हैं। (ब्रह्मणः) हे अन्न के (पते) स्वामी ! (जातवेदः) हे उत्पन्न पदार्थों के ज्ञानवाले गृहस्थ ! (तौ) उन दोनों को (शिवौ) सुखकारक (कृणु) कर ॥१॥
Connotation: - जब दाँत निकलने पर बालक माता-पिता को काटने लगे, तब गृहस्थ उनका अन्नप्राशन करके उस का पोषण करे ॥१॥
Footnote: १−(यौ) (व्याघ्रौ) अ० ४।३।१। सिंहो व्याघ्र इति पूजायाम्−निरु० ३।१८। व्याघ्रवद्बलवन्तौ (अवरूढौ) प्रादुर्भूतौ (जिघत्सतः) अद भक्षणे सन्। लुङ्सनोर्घस्लृ। पा० २।४।३७। इति घस्लृ। सः स्यार्धधातुके। पा० ७।४।४९। इति सस्य तः। अत्तुं कर्तितुमिच्छतः (पितरम्) (मातरम्) (च) (तौ) (दन्तौ) अ० ४।३।६। उपरिनीचस्थदन्तगणौ (ब्रह्मणः) अन्नस्य−निघ० २।७। (पते) स्वामिन् (शिवौ) सुखकरौ (कृणु) कुरु (जातवेदः) हे जातानां वेदित गृहस्थ ॥