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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।
Word-Meaning: - (महान्) महान्, (भ्रष्टः) परिपक्व, (अथ अपि) और भी (अभूभुवः) अशुद्धि का शोधनेवाला पुरुष (अग्नी) दोनों अग्नियों [आत्मिक और सामाजिक बलों] को (उप) पाकर (ब्रूते) कहता है−(वनस्पते) हे वनस्पति ! [काठ के पात्र ओखली] (यथा) जैसे (ते) तुझ में (पिप्पति) [मनुष्य] भरता है, (तथा एव) वैसे ही (एवति) ज्ञान के विषय में [होवे] ॥७॥
Connotation: - मन्त्र ६ के समान है ॥७॥
Footnote: ७−(महान्) (अग्नी) म० । आत्मिकसामाजिकप्रतापौ (उप) उपेत्य। प्राप्य (ब्रूते) कथयति (भ्रष्टः) भ्रस्ज पाके−क्त। भृष्टः। परिपक्वः (अथ) अनन्तरम् (अपि) (अभूभुवः) भू सत्ताशुद्धिचिन्तनमिश्रणेषु−क्विप्+भूरञ्जिभ्यां कित्। उ० ४।२१७। भू शुद्धौ−असुन् कित्। अशुद्धिशोधकः पुरुषः (यथा) (एव) (ते) त्वयि (वनस्पते) म० ६। (पिप्पति) पृ पालनपूरणयोः पृषोदरादिरूपम्। पिपर्ति। पूरयति (तथा) (एवति) म० ६ ॥