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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
राजा के धर्म का उपदेश।
Word-Meaning: - (एषः) उस [राजा] ने (इषाय) उद्योगी पुरुष को (शतम्) सौ (निष्कान्) दीनारे [सुवर्ण मुद्रा], (दश) दश (स्रजः) मालाएँ, (अर्वताम् त्रीणि शतानि) तीन सौ घोड़े और (गोनाम् दश सहस्रा) दस सहस्र गौएँ (मामहे) दान दी हैं ॥३॥
Connotation: - राजा बीसहों ऊँट-ऊँटनी आदि को रथ आदि में जोतकर अनेक उद्यम करे-करावे और उद्योगी लोगों को बहुत से उचित पारितोषिक देवे ॥२, ३॥
Footnote: ३−(एषः) स राजा (इषाय) इष गतौ-क। उद्योगिने पुरुषाय (मामहे) मंहतेर्दानकर्मा-निघ० ३।४।२। ददौ (शतम्) (निष्कान्) निश्चयेन कायति। निस्+कै शब्दे-क। यद्वा, नौ सदेर्डिच्च। उ० ३।४। षद्लृ गतिविशरणयोः-कन्, स च डित्। दीनारान्। सुवर्णमुद्राः (दश) (स्रजः) सृज विसर्गे-क्विन्। मालाः (त्रीणि) (शतानि) (अर्वताम्) अश्वानाम् (सहस्रा) सहस्राणि (दश) (गोनाम्) गवाम्। धेनूनाम् ॥