गृहस्थ के कर्तव्य का उपदेश।
Word-Meaning: - (हि) क्योंकि (सोतोः) तत्त्वरस का निकालना (वि असृक्षत) उन्होंने [लोगों ने] छोड़ दिया है, [इसी से] (देवम्) विद्वान् (इन्द्रम्) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले मनुष्य आत्मा] को (न अमंसत) उन्होंने नहीं जाना, (यत्र) जहाँ [संसार में] (अर्यः) स्वामी (मत्सखा) मेरा [देहवाले का] साथी (वृषाकपिः) वृषाकपि [बलवान् कँपानेवाले अर्थात् चेष्टा करानेवाले जीवात्मा] ने (पुष्टेषु) पुष्टिकारक धनों में (अमदत्) आनन्द पाया है, (इन्द्रः) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाला मनुष्य] (विश्वस्मात्) सब [प्राणी मात्र] से (उत्तरः) उत्तम है ॥१॥
Connotation: - जो मनुष्य, दूसरे जीवों से अधिक उत्तम और तत्त्वज्ञानी होने पर भी अपने सामर्थ्य और कर्तव्य को भूल जाते हैं, वे आत्मघाती संसार में सुख कभी नहीं पाते ॥१॥