Reads times
PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
सभापति के लक्षण का उपदेश।
Word-Meaning: - (इन्द्रे) इन्द्रे [बड़े ऐश्वर्यवाले सभापति] में (नः) हमारे (सधमादे) हर्षयुक्त उत्सव के बीच (रेवतीः) बहुत धनवाली और (तुविवाजाः) बहुत बलवाली [प्रजाएँ] (सन्तु) होवें। (याभिः) जिन [प्रजाओं] के साथ (क्षुमन्तः) बहुत अन्नवाले होकर (मदेम) हम आनन्द पावें ॥१॥
Connotation: - सभापति प्रयत्न करे कि सब प्रजागण उद्योगी, धनी होकर सुखी होवें ॥१॥
Footnote: यह तृच ऋग्वेद में है-१।३०।१३-१ सामवेद उ० ४।१। तृच १४ म० १ सा० पू० २।६।८ ॥ १−(रेवतीः) धनवत्यः प्रजाः (नः) अस्माकम् (सधमादे) आनन्देन सह वर्तमाने महोत्सवे (इन्द्रे) परमैश्वर्यवति सभाध्यक्षे (सन्तु) (तुविवाजाः) बहुबलयुक्ताः (क्षुमन्तः) बहुविधान्नयुक्ताः (याभिः) प्रजाभिः (मदेम) हृष्येम ॥