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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
विद्वानों के कर्तव्य का उपदेश।
Word-Meaning: - (ब्रह्मणः पते) हे वेद के रक्षक ! [विद्वान् पुरुष] तू (उत् तिष्ठ) उठ और (देवान्) विद्वानों को (यज्ञेन) यज्ञ [श्रेष्ठ व्यवहार] से (बोधय) जगा। (यजमानम्) यजमान [श्रेष्ठकर्म करनेवाले] को (च) और (आयुः) [उसके] जीवन, (प्राणम्) प्राण [आत्मबल], (प्रजाम्) प्रजा, [सन्तान आदि], (पशून्) पशुओं [गौएँ घोड़े आदि] और (कीर्तिम्) कीर्ति को (वर्धय) बढ़ा ॥१॥
Connotation: - विद्वान् लोग विद्वानों से मिलकर सब मनुष्यों की सब प्रकार उन्नति का उपाय करते रहें ॥१॥
Footnote: १−(उत्तिष्ठ) ऊर्ध्वं गच्छ (ब्रह्मणः) वेदस्य (पते) रक्षक विद्वन् (देवान्) विदुषः पुरुषान् (यज्ञेन) पूजनीयव्यवहारेण (बोधय) सावधानान् कुरु (आयुः) जीवनम् (प्राणम्) आत्मबलम् (प्रजाम्) पुत्रपौत्रभृत्यादिरूपाम् (पशून्) गवाश्वादीन् (कीर्तिम्) यशः (यजमानम्) यज्ञस्यानुष्ठातारम् (च) (वर्धय) समर्धय ॥