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ब॒न्धस्त्वाग्रे॑ वि॒श्वच॑या अपश्यत्पु॒रा रात्र्या॒ जनि॑तो॒रेके॒ अह्नि॑। ततः॑ स्वप्ने॒दमध्या ब॑भूविथ भि॒षग्भ्यो॑ रू॒पम॑प॒गूह॑मानः ॥

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Pad Path

बन्धः। त्वा। अग्रे। विश्वऽचयाः। अपश्यत्। पुरा। रात्र्याः। जनितोः। एके। अह्नि। ततः। स्वप्न। इदम्। अधि। आ। बभूविथ। भिषक्ऽभ्यः। रूपम्। अपऽगूहमानः ॥५६.२॥

Atharvaveda » Kand:19» Sukta:56» Paryayah:0» Mantra:2


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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

निद्रा त्याग का उपदेश।

Word-Meaning: - [हे स्वप्न !] (विश्वचयाः) संसार के संचय करनेवाले (बन्धः) प्रबन्धकर्ता [परमेश्वर] ने (त्वा) तुझे (अग्रे) पहिले ही [पूर्व जन्म में] (रात्र्याः) रात्रि [प्रलय] के (जनितोः) जन्म से (पुरा) पहिले (एके अह्नि) एक दिन [एक समय] में (अपश्यत्) देखा है। (ततः) इसी से (स्वप्न) हे स्वप्न ! (भिषग्भ्यः) वैद्यों से (रूपम्) [अपना] रूप (अपगूहमानः) छिपाता हुआ तू (इदम्) इस [जगत्] में (अधि) अधिकारपूर्वक (आ बभूविथ) व्यापा है ॥२॥
Connotation: - यह स्वप्न वा आलस्य आदि दोष पहिले जन्म के कर्मफलों के संस्कार से हैं और ईश्वरनियम से आत्मा में ऐसा गुप्त है कि विद्वान् लोग उसकी ठीक-ठीक व्यवस्था नहीं जानते। मनुष्य ऐसा विचार कर उत्तम कामों को सदा शीघ्र करें ॥२॥
Footnote: २−(बन्धः) प्रबन्धकः परमेश्वरः (त्वा) (अग्ने) पूर्वकाले (विश्वचयाः) चिञ् चयने-असुन्। संसारस्य चेता। स्रष्टा (अपश्यत्) दृष्टवान् (पुरा) पूर्वम् (रात्र्याः) प्रलयरूपरात्रिकालस्य (जनितोः) जनी प्रादुर्भावे-तोसुन्। जन्मतः सकाशात् (एके) एकस्मिन् (अह्नि) दिने। समये (ततः) तस्मात् कारणात् (स्वप्न) (इदम्) दृश्यमानं जगत् (अधि) अधिकृत्य (आ बभूविथ) भू प्राप्तौ-लिट्। व्याप्तवानसि (भिषग्भ्यः) चिकित्सकेभ्यः सकाशात् (रूपम्) स्वभावम् (अपगूहमानः) आच्छादयन् ॥