त्वमि॑न्द्रा पुरुहूत॒ विश्व॒मायु॒र्व्यश्नवत्। अह॑रहर्ब॒लिमित्ते॒ हर॒न्तोऽश्वा॑येव॒ तिष्ठ॑ते घा॒सम॑ग्ने ॥
Pad Path
त्वम्। इन्द्र। पुरुऽहूत। विश्वम्। आयुः। वि। अश्नवत्। अहःऽअहः। बलिम्। इत्। ते। हरन्तः। अश्वायऽइव। तिष्ठते। घासम्। अग्ने ॥५५.६॥
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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
गृहस्थ धर्म का उपदेश।
Word-Meaning: - (पुरुहूत) हे बहुतों से बुलाये गये (इन्द्र) परम ऐश्वर्यवाले राजन् ! (त्वम्) तू (विश्वम्) पूर्ण (आयुः) जीवन को (वि) विविध प्रकार (अश्नवत्) प्राप्त हो। (अग्ने) हे ज्ञानी राजन् ! (ते) तेरे लिये (इत्) ही (अहरहः) दिन-दिन (बलिम्) बलि [कर] (हरन्तः) लाते हुए [हम हैं], (इव) जैसे (तिष्ठते) थान पर ठहरे हुए (अश्वाय) घोड़े को (घासम्) घास [लाते हैं] ॥६॥
Connotation: - सब मनुष्य धन आदि से प्रधान पुरुष का सत्कार करते रहें, जिससे वह पूर्ण आयु प्राप्त करके सबकी रक्षा में तत्पर रहे ॥६॥
Footnote: यह मन्त्र कुछ भेद से महर्षिदयानन्दकृत ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका बलिवैश्वदेवविषय में व्याख्यात है ॥ ६−(त्वम्) (इन्द्र) हे परमैश्वर्यवन् राजन् (पुरुहूत) हे बहुभिराहूत (विश्वम्) पूर्णम् (आयुः) जीवनम् (वि) विविधम् (अश्नवत्) अश्नोतेर्लेटि अडागमः। तिङां तिङो भवन्ति। वा० पा० ७।१।३९। मध्यमपुरुषस्य प्रथमः। अश्नवः। अश्नुहि। प्राप्नुहि (अहरहः) प्रतिदिनम् (बलिम्) करम् (इत्) एव (ते) तुभ्यम् (हरन्तः) प्रापयन्तो वयम् (अश्वाय) (इव) यथा (तिष्ठते) स्वस्थाने वर्तमानाय (घासम्) भक्षणीयं पदार्थम् (अग्ने) हे विद्वन् राजन् ॥