Reads times
PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
ब्रह्म की उपासना का उपदेश।
Word-Meaning: - [हे मनुष्य !] (यः) जो (हरिमा) पीलिया रोग (जायान्यः) क्षयरोग, और (अङ्गभेदः) अङ्गों का तोड़नेवाला (विसल्पकः) विसल्पक [शरीर में फूटनेवाली हड़फूटन] है। (सर्वम्) सब (यक्ष्मम्) राजरोग को (ते) तेरे (अङ्गेभ्यः) अङ्गों से (आञ्जनम्) आञ्जन [संसार का प्रकट करनेवाला ब्रह्म] (बहिः) बाहिर (निः हन्तु) निकार मारे ॥२॥
Connotation: - परमेश्वर के नियम पर चलनेवाला धर्मात्मा पुरुष शारीरिक और आत्मिक रोगों से ज्ञान द्वारा पृथक् रहे ॥२॥
Footnote: २−(यः) (हरिमा) अ०१।२२।१। हरित-इमनिच् भावे। पाण्डुरोगः (जायान्यः) अ०७।७६।३। वदेरान्यः। उ०३।१०४। जै क्षये-आन्य। क्षयरोगः (अङ्गभेदः) अङ्गानां भेदकः (विसल्पकः) अ०६।१२७।१। वि+सृप सर्पणे-अच्, कन्, रस्य लः। शरीरे विसर्पणशीलो विसर्परोगः (सर्वम्) (ते) तव (यक्ष्मम्) राजरोगम् (अङ्गेभ्यः) शरीरावयवसकाशात् (बहिः) पृथक् (निः) नितराम् (हन्तु) नाशयतु (आञ्जनम्) म०१। संसारस्य व्यक्तिकारकं ब्रह्म। प्रलेपः ॥