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यत्र॑ ब्रह्म॒विदो॒ यान्ति॑ दी॒क्षया॒ तप॑सा स॒ह। सूर्यो॑ मा॒ तत्र॑ नयतु॒ चक्षुः॒ सूर्यो॑ दधातु मे। सूर्या॑य॒ स्वाहा॑ ॥

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यत्र। ब्रह्मऽविदः। यान्ति। दीक्षया। तपसा। सह। सूर्यः। मा। तत्र। नयतु। चक्षुः। सूर्यः। दधातु। मे ॥ सूर्याय। स्वाहा ॥४३.३॥

Atharvaveda » Kand:19» Sukta:43» Paryayah:0» Mantra:3


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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

ब्रह्म की प्राप्ति का उपदेश।

Word-Meaning: - (यत्र) जिस [सुख] में (ब्रह्मविदः) ब्रह्मज्ञानी..... [मन्त्र १]। (सूर्यः) सूर्य [सूर्य के समान प्रकाशमान परमात्मा] (मा) मुझे (तत्र) वहाँ (नयतु) पहुँचावे, (सूर्यः) सूर्य [परमात्मा] (मा) मुझको (चक्षुः) दर्शनसामर्थ्य (दधातु) देवे (सूर्याय) सूर्य [परमात्मा] के लिये (स्वाहा) स्वाहा [सुन्दर वाणी] होवे ॥३॥
Connotation: - मन्त्र १ के समान ॥३॥
Footnote: ३−(सूर्यः) सूर्यवत्प्रकाशमानः परमात्मा (चक्षुः) दर्शनसामर्थ्यम् (सूर्यः) (सूर्याय) प्रकाशमानाय परमात्मने। अन्यत् पूर्ववत् ॥