Go To Mantra

यत्र॑ ब्रह्म॒विदो॒ यान्ति॑ दी॒क्षया॒ तप॑सा स॒ह। अ॒ग्निर्मा॒ तत्र॑ नयत्व॒ग्निर्मे॒धा द॑धातु मे। अ॒ग्नये॒ स्वाहा॑ ॥

Mantra Audio
Pad Path

यत्र। ब्रह्मऽविदः। यान्ति। दीक्षया। तपसा। सह। अग्निः। मा। तत्र। नयतु। अग्निः। मेधाः। दधातु। मे। अग्नये। स्वाहा ॥४३.१॥

Atharvaveda » Kand:19» Sukta:43» Paryayah:0» Mantra:1


Reads times

PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

ब्रह्म की प्राप्ति का उपदेश।

Word-Meaning: - (यत्र) जहाँ [सुख में] (ब्रह्मविदः) ब्रह्मज्ञानी [ईश्वर वा वेद के जाननेवाले लोग] (दीक्षया) दीक्षा [नियम और व्रत की शिक्षा] और (तपसा सह) तप [वेदाध्ययन, जितेन्द्रियता] के साथ (यान्ति) पहुँचते हैं। (अग्निः) अग्नि [अग्निसमान सर्वव्यापक परमात्मा] (मा) मुझे (तत्र) वहाँ [सुख में] (नयतु) पहुँचावे, (अग्निः) अग्नि [व्यापक परमात्मा] (मेधाः) धारणावती बुद्धियाँ (मे) मुझको (दधातु) देवे। (अग्नये) अग्नि [परमात्मा] के लिये (स्वाहा) [सुन्दर वाणी] होवे ॥१॥
Connotation: - मनुष्य योगी महात्माओं के समान दीक्षा और ब्रह्मचर्य आदि व्रत से परमेश्वर और शारीरिक और आत्मिक बल में दृढ़ रहकर अनेक प्रकार बुद्धियों को बढ़ाते हुए सुख प्राप्त करें ॥१॥
Footnote: यह सूक्त कुछ भेद से महर्षिदयानन्दकृत संस्कारविधि संन्यासाश्रमप्रकरण में उद्धृत है ॥१−(यत्र) यस्मिन् सुखे (ब्रह्मविदः) ईश्वरस्य वेदस्य वा वेत्तारः (यान्ति) गच्छन्ति (दीक्षया) नियमव्रतया शिक्षया (तपसा) ब्रह्मचर्यादितपश्चरणेन (सह) (अग्निः) अग्निवत् सर्वव्यापकः परमात्मा (मा) माम् (तत्र) सुखे (नयतु) प्रापयतु (अग्निः) व्यापकः परमेश्वरः (मेधाः) धारणावतीर्बुद्धीः (दधातु) ददातु (मे) मह्यम् (अग्नये) परमात्मने (स्वाहा) सुवाणी ॥