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श॒तम॒हं दु॒र्णाम्नी॑नां गन्धर्वाप्स॒रसां॑ श॒तम्। श॒तं श॒श्व॒न्वती॑नां श॒तवा॑रेण वारये ॥

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शतम्। अहम्। दुःऽनाम्नीनाम्। गन्धर्वऽअप्सरसाम्। शतम्। शतम्। शश्वन्ऽवतीनाम्। शतऽवारेण। वारये ॥३६.६॥

Atharvaveda » Kand:19» Sukta:36» Paryayah:0» Mantra:6


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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

रोगों के नाश का उपदेश।

Word-Meaning: - (अहम्) मैं (दुर्णाम्नीनां शतम्) सौ दुर्नाम्नी [बवासीर आदि पीड़ाओं] को और (गन्धर्वाप्सरसां शतम्) सौ गन्धर्वों [पृथिवी पर धरे हुए] और अप्सराओं [आकाश में चलनेवाले रोगों] को और (शश्वन्वतीनां शतम्) सौ उछलती हुई [पीड़ाओं] को (शतवारेण) शतवार [औषध] से (वारये) हटाता हूँ ॥६॥
Connotation: - जो रोग शरीर की मलीनता से पृथिवी और आकाश में जल-वायु की मलीनता से और जो रोग एक दूसरे के लगाव से उत्पन्न होते हैं, वैद्य लोग उनको शतवार औषध से नाश करें ॥६॥
Footnote: ६−(शतम्) अनेकान् (अहम्) वैद्यः (दुर्णाम्नीनाम्) अन उपधालोपिनोऽन्यतरस्याम्। पा०४।१।२८। इति ङीप्। अर्शआदिरोगपीडानाम् (गन्धर्वाप्सरसाम्) अ–०८।८।१५। कॄगॄशॄदॄभ्यो वः। उ०१।१५५। गो+धृञ् धारणे-व प्रत्ययः, गो शब्दस्य गमादेशः+सरतेरप्पूर्वादसिः। उ०४।२३७। अप+सृ गतौ-असि। गवि पृथिव्यां ध्रियन्ते ते गन्धर्वाः। अप्सु आकाशे सरन्ति गच्छन्तीति अप्सरसः। तादृशानां रोगाणाम् (शतम्) बहून् (शतम्) (शश्वन्वतीनाम्) स्नामदिपद्यर्ति०। उ०४।११३। शश प्लुतगतौ-वनिप्। शश्वन्-मतुप्। मादुपधायाश्च०। पा०८।२।९। इति वत्वम्। अनो नुट्। पा०८।२।१६। इति नुट्, ङीप्। प्लुतगतियुक्तानां पीडानाम् (शतवारेण) म०१। औषधविशेषेण (वारये) निवारयामि ॥