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अथो॑पदान भगवो॒ जाङ्गि॒डामि॑तवीर्य। पु॒रा त॑ उ॒ग्रा ग्र॑सत॒ उपेन्द्रो॑ वी॒र्यं ददौ ॥

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अथ। उपऽदान। भगऽवः। जङ्गिड। अमितऽवीर्य। पुरा। ते। उग्राः। ग्रसते। उप। इन्द्रः। वीर्यम्। ददौ ॥३४.८॥

Atharvaveda » Kand:19» Sukta:34» Paryayah:0» Mantra:8


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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

सबकी रक्षा का उपदेश।

Word-Meaning: - (अथ) और, (उपदान) हे ग्रहण करने योग्य ! (भगवः) हे ऐश्वर्यवान् ! (अमितवीर्य) हे अपरिमित सामर्थ्यवाले ! (जङ्गिड) हे जङ्गिड ! [संचार करनेवाले औषध] (उग्राः) तेजस्वी लोग (ते) तेरा (ग्रसते) ग्रास करते हैं, [इसलिये] (इन्द्रः) इन्द्र [परम ऐश्वर्यवान् जगदीश्वर] ने (पुरा) पहिले काल में [तुझे] (वीर्यम्) सामर्थ्य (उप ददौ) दिया है ॥८॥
Connotation: - परमात्मा ने यह विचारकर कि जङ्गिड औषध सर्वोपकारी होवे, उसको पहिले ही से बड़ा प्रभावशाली बनाया है ॥८॥
Footnote: ८−(अथो) अपि च (उपदान) हे स्वीकरणीय (भगवः) हे ऐश्वर्यवन् (जङ्गिड) म०१। हे संचारशील महौषध (अमितवीर्य) हे महाप्रभाव जङ्गिड (पुरा) पूर्वकाले (ते) तव (उग्राः) तेजस्विनः पुरुषाः (ग्रसते) अदादिः। ग्रासं कुर्वन्ति। सेवन्ते (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् जगदीश्वरः (वीर्यम्) प्रभावम् (उप ददौ) प्रदत्तवान् ॥