पितरों और सन्तान के कर्तव्य का उपदेश।
Word-Meaning: - [हे स्त्री-पुरुषो !]तुम दोनों (आ) सब ओर (प्रच्यवेथाम्) आगे बढ़ो, और (तत्) उस [पाप] को (अपमृजेथाम्) शोध डालो, (यत्) जिस को (वाम्) तुम दोनों के (अभिभाः) सामने चमकतीहुई आपत्तियों ने (अत्र) यहाँ पर (ऊचुः) बताया है। (पितृषु) पितरों के बीच (दातुः मम) मुझ दानी के (इहभोजनौ) यहाँ पालन करनेवाले (अघ्न्यौ) हिंसा नकरनेवाले तुम दोनों (अस्मात्) इस [पाप] से पृथक् होकर (तत्) उस [सुकर्म] को (आ)सब प्रकार (इतम्) प्राप्त हो [जो सुकर्म] (वशीयः) अधिक वश करनेवाला है ॥४९॥
Connotation: - जिस पाप के कारणमनुष्य पर अनेक विपत्तियाँ आपड़ती हैं, स्त्री-पुरुष पुरुषार्थपूर्वक विद्वान्पितरों की आज्ञा मान कर उस पाप को हटाकर सुकर्म में प्रवृत्त हों, क्योंकिसुकर्म ही से मनुष्य पाप को वश में करता है ॥४९॥