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पृ॑थि॒वीं त्वा॑पृथि॒व्यामा वे॑शयामि दे॒वो नो॑ धा॒ता प्र ति॑रा॒त्यायुः॑। परा॑परैतावसु॒विद्वो॑ अ॒स्त्वधा॑ मृ॒ताः पि॒तृषु॒ सं भ॑वन्तु ॥

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Pad Path

पृथिवीम् । त्वा । पृथिव्याम् । आ । वेशयामि । देव: । न: । धाता । प्र । तरति । आयु: । पराऽपरैता । वसुऽवित् । व: । अस्तु । अध । मृता: । पितृषु । सम् । भवन्तु ॥४.४८॥

Atharvaveda » Kand:18» Sukta:4» Paryayah:0» Mantra:48


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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI

पितरों और सन्तान के कर्तव्य का उपदेश।

Word-Meaning: - [हे प्रजा ! स्त्री वापुरुष] (पृथिवीम् त्वा) तुझ प्रख्यात को (पृथिव्याम्) प्रख्यात [विद्या] के भीतर (आ वेशयामि) मैं [माता-पिता आचार्य आदि] प्रवेश कराता हूँ, (देवः) प्रकाशस्वरूप (धाता) धाता [पोषक परमात्मा] (नः) हमारी (आयुः) आयु को (प्र तिराति) बढ़ावे। (परापरैता)अत्यन्त पराक्रम से चलनेवाला पुरुष (वः) तुम्हारे लिये (वसुवित्) श्रेष्ठपदार्थों का पानेवाला (अस्तु) होवे, (अध) तब (मृताः) मरे हुए [निरुत्साहीपुरुष] (पितृषु) पितरों [पालक विद्वानों] के बीच (सं भवन्तु) समर्थ होवें ॥४८॥
Connotation: - माता-पिता आचार्य आदिसन्तानों को उत्तम विद्या देवें, जिससे वे परमेश्वर के भक्त होकर श्रेष्ठ जीवनबितावें और बड़े नेता और श्रेष्ठ धनी होवें और उनके देखने से निरुत्साही भीउत्साही होकर पितरों में स्थान पावें ॥४८॥इस मन्त्र का प्रथम पाद ऊपर आ चुका है-अ०१२।३।२२ ॥
Footnote: ४८−(पृथिवीम्) प्रख्याताम् (त्वा) त्वां प्रजां पुरुषं स्त्रियं वा (पृथिव्याम्) प्रख्यातायां विद्यायाम् (आवेशयामि) प्रवेशयामि (देवः)प्रकाशस्वरूपः (नः) अस्माकम् (धाता) पोषकः परमात्मा (प्र तिराति) तरतेर्लेट्।वर्धयतु (आयुः) जीवनम् (परापरैता) परा+परा+इण् गतौ-तृन्। अभ्यासे भूयांसमर्थंमन्यन्ते-निरु० १०।४२। अतिशयेन पराक्रमेण गन्ता (वसुवित्) विद्लृ लाभे-क्विप्।श्रेष्ठपदार्थानां लम्भयिता प्रापयिता (वः) युष्मभ्यम् (अध) अथ (मृताः)त्यक्तप्राणाः। निरुत्साहिनः (पितृषु) पालकेषु विद्वत्सु (सं भवन्तु)संभूतियुक्ताः समर्था भवन्तु ॥