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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
सर्वत्र परमेश्वर के धारण का उपदेश।
Word-Meaning: - [हे ईश्वर !] (धर्ता)तू धारण करनेवाला (असि) है, (धरुणः) तू स्थिर स्वभाववाला (असि) है और (वंसगः) तूसेवनीय व्यवहारों का प्राप्त करानेवाला (असि) है ॥३६॥
Connotation: - मनुष्यों को योग्य हैकि पूर्वोक्त प्रकार से परमात्मा को सब दिशाओं में व्यापक जानकर दृढ़ स्वभावहोवें और शुद्ध जल, वायु, अन्न आदि से शरीर के धातुरसों को पुष्ट करें। वहसर्वपोषक परमात्मा जल आदि स्थूल और सूक्ष्म पदार्थों से और ज्ञानियों के ज्ञानसे अधिक आगे है ॥३६, ३७॥
Footnote: ३६−(धर्ता) धारकःपरमेश्वरः (असि) (धरुणः) म० २९ स्थिरस्वभावः (असि) (वंसगः) वृतॄवदिवचि०। उ०३।६२। वन संभक्तौ-स प्रत्ययः+गमयतेर्डः। वंसानां सेवनीयानां व्यवहाराणां गमयिताप्रापयिता (असि) ॥