यस्य॒ त्रय॑स्त्रिंशद्दे॒वा नि॒धिं रक्ष॑न्ति सर्व॒दा। नि॒धिं तम॒द्य को वे॑द॒ यं दे॑वा अभि॒रक्ष॑थ ॥
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यस्य । त्रय:ऽत्रिंशत् । देवा: । निऽधिम् । रक्षन्ति । सर्वदा । निऽधिम् । तम् । अद्य । क: । वेद । यम् । देवा: । अभिऽरक्षथ ॥७.२३॥
Atharvaveda » Kand:10» Sukta:7» Paryayah:0» Mantra:23
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PANDIT KSHEMKARANDAS TRIVEDI
ब्रह्म के स्वरूप के विचार का उपदेश।
Word-Meaning: - (यस्य) जिस [परमेश्वर] के (निधिम्) कोष [संसार] को (त्रयस्त्रिंशत्) तेंतीस (देवाः) देव [दिव्य पदार्थ] (सर्वदा) सर्वदा (रक्षन्ति) रखाते हैं। (तम्) उस (निधिम्) कोष की (अद्य) आज (कः) कौन (वेद) जानता है, (यम्) जिस को, (देवाः) हे देवो ! [दिव्य पदार्थों] (अभिरक्षथ) तुम सर्वदा रखवाली करते हो ॥२३॥
Connotation: - आठ वसु, ग्यारह रुद्र, बारह आदित्य, एक इन्द्र और एक प्रजापति [मन्त्र १३ देखो] परमेश्वर के नियम से संसार के व्यवहार सदा सिद्ध करते हैं ॥२३॥
Footnote: २३−(यस्य) परमेश्वरस्य (त्रयस्त्रिंशत्) म० १३ (देवाः) वस्वादयो दिव्यपदार्थाः (निधिम्) कोषम्। संसारम् (रक्षन्ति) पालयन्ति (सर्वदा) (वेद) जानाति। अन्यत् सुगमम् ॥